अमेरिकी मीडिया ने अमेरिकी राष्ट्रपति के उस दावे को निराधार बताया जिसमें उन्होंने दावा किया है कि ईरान के परमाणु संयंत्रों पर हमला सफल रहा है।
पार्स टुडे की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिसी के सदस्य और "फॉरेन पॉलिसी" पत्रिका के विश्लेषक मैथ्यू डस ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ईरान के परमाणु संयंत्रों पर किए गए हमले ग़ैरकानूनी थे और संभवतः विफल रहे। उन्होंने अमेरिकी अधिकारियों को चेतावनी दी कि वे एक "नकली व फ़र्ज़ी जीत" को वास्तविक शांति को खतरे में न डालने दें और स्थिति को अस्थिर न होने दें।
डस का मानना है कि ट्रम्प और उनके "युद्धोन्मादी सहयोगियों" के दावों के बावजूद, अमेरिका के ईरान पर हमले के बाद अब एक "अधिक अस्थिर" दौर शुरू हो गया है।
लगभग एक सप्ताह पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति के ईरान के परमाणु संयंत्रों फोर्दू, नतंज़ और इस्फ़हान पर हमला करने के आदेश के बाद, डोनाल्ड ट्रम्प ने शुरू में दावा किया था कि इन हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को "नष्ट" कर दिया है और ये अभियान "अत्यंत सफल" रहे हैं।
हालाँकि, कुछ समय बाद, सीएनएन और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे प्रमुख मीडिया संस्थानों ने गोपनीय जानकारी का खुलासा करते हुए बताया कि ये हमले ईरान के परमाणु कार्यक्रम को मात्र कुछ महीनों के लिए ही धीमा व पीछे कर पाए हैं।
इस सच्चाई के सामने आने के बाद, ट्रम्प और उनकी सरकार ने इसे छिपाने की कोशिश की।
मैथ्यू डस ने ट्रम्प की युद्ध-समर्थक नीतियों की आलोचना करते हुए अमेरिकी अधिकारियों, विशेष रूप से युद्ध-विरोधी डेमोक्रेट्स, से आग्रह किया कि वे राष्ट्रपति के और आक्रामक कदमों को रोकें।
इस अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ ने लिखा कि ट्रम्प लगातार "बम बटन" दबाने और नए युद्ध छेड़ने की सोच रहे हैं, जबकि कूटनीति के ज़रिए ईरान के साथ मुद्दों को सुलझाया जा सकता था। उन्होंने अमेरिकी लोगों को चेतावनी दी कि अगर वे ट्रम्प को नहीं रोकते, तो वे अनंत युद्धों में फंस जाएंगे।
उन्होंने इज़राइली शासन द्वारा पश्चिमी एशिया क्षेत्र को अस्थिर करने की कार्रवाइयों की भी आलोचना की और जोर देकर कहा कि इज़रायली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतन्याहू अमेरिका को ईरान के साथ एक लंबे संघर्ष में घसीटना चाहते थे, लेकिन युद्धविराम ने नेतन्याहू को उसके लक्ष्य तक पहुंचने से रोक दिया।
इस अंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक ने स्पष्ट किया कि वाशिंगटन को जल्द से जल्द अपनी वर्तमान रणनीति बदलनी चाहिए और कूटनीति का रास्ता अपनाना चाहिए।
जबकि ईरान और अमेरिका के बीच वार्ता चल रही थी, 13 जून की सुबह इज़राइली शासन ने इस बहाने कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम ख़तरनाक है, इस देश पर सैन्य हमले शुरू कर दिए, जिससे तेहरान और तेल अवीव के बीच संघर्ष छिड़ गया और यह 12 दिनों तक चला।
22 जून को, इज़रायली शासन की मांग पर, अमेरिका ने ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु प्रतिष्ठानों पर जो अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निगरानी में थीं, हमला किया। इस आक्रमण के जवाब में, ईरान ने क़तर में स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे "अल-उदैद" को निशाना बनाया। MM