अली असगर डे, जिसे यौम-ए-अली असगर (روزِ علی اصغر) भी कहा जाता है, शिया मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण दिन है। यह दिन हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) के छह महीने के पुत्र, हजरत अली असगर (अ.स.) की शहादत को याद करने के लिए समर्पित है। अली असगर करबला की जंग (680 ईस्वी) में शहीद हुए सबसे छोटे शहीद माने जाते हैं। यह दिन शिया समुदाय में विशेष रूप से माताओं और बच्चों के बलिदान के प्रति सम्मान और संवेदना व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
क्यों मनाया जाता है अली असगर डे?
अली असगर डे का उद्देश्य करबला के मैदान में हजरत अली असगर की शहादत की याद को जीवित रखना और उससे जुड़े नैतिक और आध्यात्मिक सबक को प्रचारित करना है। करबला की जंग में, 10 मुहर्रम 61 हिजरी (10 अक्टूबर 680 ईस्वी) को, इमाम हुसैन और उनके परिवार व अनुयायियों को यज़ीद की सेना ने घेर लिया था। पानी की कमी के कारण इमाम हुसैन का परिवार और साथी प्यास से तड़प रहे थे। इस दौरान, इमाम हुसैन ने अपने छह महीने के शिशु अली असगर को अपनी बाहों में उठाकर यज़ीद की सेना से पानी की गुहार लगाई। लेकिन मानवता को शर्मसार करते हुए, यज़ीद की सेना ने मासूम अली असगर के गले में तीर मारकर उनकी शहादत कर दी।
यह घटना न केवल शिया मुस्लिमों के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए एक दुखद और प्रेरणादायक उदाहरण है, जो अत्याचार के खिलाफ खड़े होने, बलिदान और सत्य के लिए लड़ने की भावना को दर्शाती है। अली असगर डे इस शहादत को याद करने और माताओं के त्याग, बच्चों की मासूमियत, और इमाम हुसैन के साहस को सम्मान देने का अवसर है। इस दिन माताएं अपने बच्चों को इमाम-ए-ज़माना (इमाम महदी) की नुसरत (सहायता) के लिए समर्पित करने का संकल्प लेती हैं।
कब मनाया जाता है अली असगर डे?
अली असगर डे इस्लामिक कैलेंडर के मुहर्रम महीने के पहले शुक्रवार को मनाया जाता है। मुहर्रम इस्लामिक वर्ष का पहला महीना है, और यह दिन आमतौर पर मुहर्रम की शुरुआत में आता है। चूंकि इस्लामिक कैलेंडर चंद्रमा पर आधारित है, इसलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार इसकी तारीख हर साल बदलती रहती है। उदाहरण के लिए, 2025 में यदि मुहर्रम जुलाई में शुरू होता है, तो अली असगर डे संभवतः जुलाई के पहले शुक्रवार को मनाया जाएगा।
कैसे मनाया जाता है?
अली असगर डे पर शिया समुदाय में विशेष आयोजन किए जाते हैं, जिनमें शामिल हैं:
मजलिस-ए-अज़ा (शोक सभाएं): इस दिन मस्जिदों, इमामबाड़ों और हुसैनियाओं में मजलिस का आयोजन होता है, जहां करबला की घटनाओं, विशेष रूप से अली असगर की शहादत की कहानी को बयान किया जाता है। उलेमा और जाकिर (वक्ता) इस मासूम शिशु की शहादत की मार्मिक कहानी सुनाते हैं, जिससे श्रोता भावुक हो जाते हैं।
झूलों का प्रदर्शन: अली असगर डे पर छोटे-छोटे झूलों को सजाया जाता है, जो अली असगर का प्रतीक माना जाता है। ये झूले मासूमियत और बलिदान का प्रतीक होते हैं।
जुलूस और मातम: कई स्थानों पर जुलूस निकाले जाते हैं, जिनमें लोग काले कपड़े पहनकर और मातम करते हुए अली असगर की शहादतहेडलाइन: अली असगर डे: हजरत अली असगर की शहादत का स्मरण, महत्व और तारीख
अली असगर डे क्या है?
अली असगर डे, जिसे यौम-ए-अली असगर (روزِ علی اصغر) भी कहा जाता है, शिया मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण दिन है। यह दिन हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) के छह महीने के पुत्र, हजरत अली असगर (अ.स.) की शहादत को याद करने के लिए समर्पित है। अली असगर करबला की जंग (680 ईस्वी) में शहीद हुए सबसे छोटे शहीद माने जाते हैं। यह दिन शिया समुदाय में विशेष रूप से माताओं और बच्चों के बलिदान के प्रति सम्मान और संवेदना व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
क्यों मनाया जाता है अली असगर डे?
अली असगर डे का उद्देश्य करबला के मैदान में हजरत अली असगर की शहादत की याद को जीवित रखना और उससे जुड़े नैतिक और आध्यात्मिक सबक को प्रचारित करना है। करबला की जंग में, 10 मुहर्रम 61 हिजरी (10 अक्टूबर 680 ईस्वी) को, इमाम हुसैन और उनके परिवार व अनुयायियों को यज़ीद की सेना ने घेर लिया था। पानी की कमी के कारण इमाम हुसैन का परिवार और साथी प्यास से तड़प रहे थे। इस दौरान, इमाम हुसैन ने अपने छह महीने के शिशु अली असगर को अपनी बाहों में उठाकर यज़ीद की सेना से पानी की गुहार लगाई। लेकिन मानवता को शर्मसार करते हुए, यज़ीद की सेना ने मासूम अली असगर के गले में तीर मारकर उनकी शहादत कर दी।
यह घटना न केवल शिया मुस्लिमों के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए एक दुखद और प्रेरणादायक उदाहरण है, जो अत्याचार के खिलाफ खड़े होने, बलिदान और सत्य के लिए लड़ने की भावना को दर्शाती है। अली असगर डे इस शहादत को याद करने और माताओं के त्याग, बच्चों की मासूमियत, और इमाम हुसैन के साहस को सम्मान देने का अवसर है। इस दिन माताएं अपने बच्चों को इमाम-ए-ज़माना (इमाम महदी) की नुसरत (सहायता) के लिए समर्पित करने का संकल्प लेती हैं।
कब मनाया जाता है अली असगर डे?
अली असगर डे इस्लामिक कैलेंडर के मुहर्रम महीने के पहले शुक्रवार को मनाया जाता है। मुहर्रम इस्लामिक वर्ष का पहला महीना है, और यह दिन आमतौर पर मुहर्रम की शुरुआत में आता है। चूंकि इस्लामिक कैलेंडर चंद्रमा पर आधारित है, इसलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार इसकी तारीख हर साल बदलती रहती है। उदाहरण के लिए, 2025 में यदि मुहर्रम जुलाई में शुरू होता है, तो अली असगर डे संभवतः जुलाई के पहले शुक्रवार को मनाया जाएगा।
कैसे मनाया जाता है?
अली असगर डे पर शिया समुदाय में विशेष आयोजन किए जाते हैं, जिनमें शामिल हैं:
मजलिस-ए-अज़ा (शोक सभाएं): इस दिन मस्जिदों, इमामबाड़ों और हुसैनियाओं में मजलिस का आयोजन होता है, जहां करबला की घटनाओं, विशेष रूप से अली असगर की शहादत की कहानी को बयान किया जाता है। उलेमा और जाकिर (वक्ता) इस मासूम शिशु की शहादत की मार्मिक कहानी सुनाते हैं, जिससे श्रोता भावुक हो जाते हैं।
झूलों का प्रदर्शन: अली असगर डे पर छोटे-छोटे झूलों को सजाया जाता है, जो अली असगर का प्रतीक माना जाता है। ये झूले मासूमियत और बलिदान का प्रतीक होते हैं।
जुलूस और मातम: कई स्थानों पर जुलूस निकाले जाते हैं, जिनमें लोग काले कपड़े पहनकर और मातम करते हुए अली असगर की शहादत को याद करते हैं।
माताओं का संकल्प: माताएं इस दिन अपने बच्चों को इमाम-ए-ज़माना की सेवा के लिए समर्पित करने की दुआ करती हैं। यह संकल्प करबला के बलिदान की भावना को जीवित रखने का प्रतीक है।
लंगर और दान: इस दिन भोजन वितरण (लंगर) और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। लोग गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं।
महत्व और संदेश:
अली असगर डे का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक भी है। यह दिन निम्नलिखित संदेश देता है:
अत्याचार के खिलाफ संघर्ष: हजरत अली असगर की शहादत हमें सिखाती है कि सत्य और न्याय के लिए हर उम्र में बलिदान देना पड़ सकता है।
मासूमियत का सम्मान: एक छह महीने के शिशु की शहादत मानवता के प्रति क्रूरता के खिलाफ एक चेतावनी है।
मातृ-प्रेम और बलिदान: यह दिन माताओं के त्याग और उनके बच्चों के प्रति प्रेम को भी उजागर करता है।
शांति और एकता: यह दिन सभी समुदायों को एकजुट होकर अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा देता है।
निष्कर्ष:
अली असगर डे करबला की त्रासदी का एक मार्मिक हिस्सा है, जो शिया मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। यह दिन हजरत अली असगर की शहादत के माध्यम से सत्य, न्याय और बलिदान की भावना को जीवित रखता है। मुहर्रम के पहले शुक्रवार को मनाए जाने वाले इस दिन पर शोक सभाएं, जुलूस और दुआओं के माध्यम से इस मासूम शहीद को याद किया जाता है। यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि मानवता और सत्य के लिए किसी भी उम्र में बलिदान देना पड़ सकता है।