इजरायल ने 13 जून 2025 को ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए, जिसे कई विश्लेषकों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव और हथियारों के समर्थन से प्रेरित माना। हालांकि, यह हमला इजरायल के लिए उल्टा साबित हुआ, क्योंकि ईरान ने तुरंत जवाबी हमले शुरू किए, जिसने इजरायल के प्रमुख शहरों तेल अवीव और यरुशलम में तबाही मचाई। इस घटना ने मध्य पूर्व में तनाव को चरम पर पहुंचा दिया और इजरायल की रणनीति पर सवाल उठाए।
इजरायल ने दावा किया कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए यह हमला जरूरी था। संयुक्त राष्ट्र की परमाणु एजेंसी (IAEA) ने हाल ही में ईरान को गैर-अनुपालन का दोषी ठहराया था, जिसके बाद इजरायल ने यह कदम उठाया। कई स्रोतों के अनुसार, ट्रंप ने इजरायल को हमले के लिए प्रोत्साहित किया, यह कहते हुए कि ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना जरूरी है। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, "ईरान को परमाणु हथियार नहीं बनाने देंगे," और इजरायल को समर्थन देने की बात कही।
हालांकि, कुछ अमेरिकी अधिकारियों और विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप ने इजरायल को हमले से रोकने की कोशिश की थी, ताकि ईरान के साथ परमाणु वार्ता को मौका मिले। फिर भी, इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहु ने एकतरफा कार्रवाई की, जिसे ट्रंप ने बाद में समर्थन दिया।
ईरान का जवाबी हमला
इजरायल के हमलों में ईरान के 78 लोग मारे गए, जिनमें 20 बच्चे शामिल थे, और कई वरिष्ठ सैन्य कमांडर और परमाणु वैज्ञानिक हताहत हुए। इसके जवाब में, ईरान ने सैकड़ों बैलिक मिसाइलें और ड्रोन इजरायल पर दागे। रॉयटर्स के अनुसार, तेल अवीव में इमारतों में आग लग गई और यरुशलम में विस्फोटों की आवाजें गूंजीं। कम से कम 4 लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए। ईरान की इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) ने कहा कि यह हमला इजरायल की आक्रामकता का जवाब था।
ईरान ने न केवल इजरायल, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस को भी चेतावनी दी कि यदि वे इजरायल का साथ देते हैं, तो उनके क्षेत्रीय ठिकानों को निशाना बनाया जाएगा। इस जवाबी कार्रवाई ने इजरायल की वायु रक्षा प्रणालियों की कमजोरियों को उजागर किया, जिसे पहले अजेय माना जाता था।
इजरायल की भूल
विश्लेषकों का मानना है कि इजरायल ने ईरान की जवाबी क्षमता को कम आंका। ईरान के हिजबुल्लाह और हमास जैसे सहयोगी समूहों को हाल के वर्षों में कमजोर करने के बावजूद, ईरान ने अपनी मिसाइल और ड्रोन तकनीक को मजबूत किया। इजरायल के हमले ने ईरान को और अधिक आक्रामक बना दिया, जिसने अब परमाणु कार्यक्रम को तेज करने की धमकी दी है।
इसके अलावा, इजरायल का यह कदम ट्रंप की कूटनीतिक कोशिशों को नुकसान पहुंचा सकता है। ट्रंप ने बार-बार कहा कि वह ईरान के साथ समझौता चाहते हैं, लेकिन इजरायल के हमले ने वार्ता की संभावनाओं को कमजोर कर दिया। कुछ डेमोक्रेट सांसदों, जैसे सीनेटर क्रिस मर्फी, ने नेतन्याहु पर आरोप लगाया कि उन्होंने जानबूझकर वार्ता को नाकाम करने के लिए हमला किया।
क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव
इस संघर्ष ने मध्य पूर्व को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया है। जॉर्डन, इराक और ईरान ने अपने हवाई क्षेत्र बंद कर दिए, और तेल की कीमतों में 4% से अधिक की वृद्धि हुई। वैश्विक समुदाय चिंतित है कि यह तनाव एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध में बदल सकता है, जिसमें अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश भी शामिल हो सकते हैं।
निष्कर्ष
इजरायल का ईरान पर हमला, जो संभवतः ट्रंप के प्रभाव और अमेरिकी हथियारों के समर्थन से हुआ, एक रणनीतिक भूल साबित हुआ। ईरान के तीखे जवाब ने इजरायल की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डाल दिया। यह घटना दर्शाती है कि सैन्य कार्रवाई से पहले कूटनीति और सावधानी बरतना कितना जरूरी है। अब सवाल यह है कि क्या यह तनाव कम होगा, या मध्य पूर्व एक और बड़े युद्ध की ओर बढ़ेगा।