इसराइल और ईरान के बीच तनाव चरम पर है। हाल ही में ईरान की मिसाइलों ने इसराइल के बीरशेबा में सोरोका अस्पताल को निशाना बनाया, जिसके जवाब में इसराइली रक्षा मंत्री योआव गैलेंट ने ईरान के सर्वोच्च नेता अली ख़ामेनेई को "आधुनिक हिटलर" करार देते हुए कहा कि उन्हें "जिंदा नहीं रहने देना चाहिए।" इस बयान ने एक गंभीर सवाल खड़ा किया है: अगर इसराइल अस्पताल पर हमले के लिए ख़ामेनेई को जिम्मेदार ठहराता है, तो क्या गाजा में अस्पतालों पर हुए हमलों के जिम्मेदारों को भी सजा मिलनी चाहिए?
गाजा में 7 अक्टूबर 2023 के बाद इसराइली कार्रवाइयों में कई अस्पताल क्षतिग्रस्त हुए, जिनमें अल-अहली और अल-शिफा अस्पताल शामिल हैं। हमास-नियंत्रित स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इन हमलों में 43,000 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें नागरिक और बच्चे शामिल थे। इसराइल का दावा है कि हमास अस्पतालों को सैन्य अड्डों के रूप में इस्तेमाल करता था, लेकिन मानवाधिकार संगठनों ने इन हमलों को "युद्ध अपराध" की संज्ञा दी है।
दोनों पक्षों के अस्पतालों पर हमले मानवीय संकट को गहरा करते हैं। सोरोका हमले में 65 लोग घायल हुए, लेकिन अस्पताल को गंभीर नुकसान नहीं हुआ। वहीं, गाजा के अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव मरीजों की जान जोखिम में डाल रहा है। इसराइल और ईरान एक-दूसरे पर नागरिक ठिकानों को निशाना बनाने का आरोप लगाते हैं, लेकिन सवाल वही है—क्या युद्ध के नाम पर अस्पतालों को तबाह करना उचित है?
नैतिकता और अंतरराष्ट्रीय कानून के दृष्टिकोण से, अस्पतालों पर हमले निषिद्ध हैं। जिनेवा संधि स्पष्ट रूप से चिकित्सा केंद्रों की सुरक्षा की बात करती है। फिर भी, दोनों पक्षों की कार्रवाइयाँ इस सिद्धांत का उल्लंघन करती दिखती हैं। अगर ख़ामेनेई को सजा की बात उठती है, तो गाजा के अस्पतालों पर हमलों के जिम्मेदारों की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए। युद्ध में जीत का दावा करने से पहले, मानवता की रक्षा का सवाल सबसे बड़ा है।