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Tuesday, 1 July 2025

राफेल डील और अनिल अंबानी का 1123 करोड़ टैक्स माफी विवाद:

राफेल डील और अनिल अंबानी का 1123 करोड़ टैक्स माफी विवाद:
2019 में राफेल डील के बाद अनिल अंबानी की कंपनी को फ्रांस सरकार द्वारा 143.7 मिलियन यूरो (लगभग 1123 करोड़ रुपये) की टैक्स माफी का मुद्दा सुर्खियों में आया। यह मामला भारत में राफेल लड़ाकू विमान सौदे के साथ जोड़ा गया, जिसने सियासी हलकों में तीखी बहस छेड़ दी। इस लेख में हम इस विवाद की हकीकत को संक्षेप में समझने की कोशिश करते हैं। ### राफेल डील का पृष्ठभूमि 2016 में भारत सरकार ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए 59,000 करोड़ रुपये का सौदा किया। इस डील का एक हिस्सा ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट था, जिसमें दसॉल्ट को भारत में निवेश करना था। इस कॉन्ट्रैक्ट के तहत अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को दसॉल्ट का साझेदार चुना गया, जबकि सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को दरकिनार किया गया। यह निर्णय विवादों का कारण बना, क्योंकि रिलायंस डिफेंस की सहायक कंपनी, रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड, को इस क्षेत्र में ज्यादा अनुभव नहीं था। 

टैक्स माफी का दावा अप्रैल 2019 में फ्रांस की न्यूज वेबसाइट *मीडियापार्ट* ने खुलासा किया कि फ्रांस सरकार ने अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस के 143.7 मिलियन यूरो (लगभग 1123 करोड़ रुपये) के टैक्स और जुर्माने को माफ कर दिया। यह माफी 2015-16 में राफेल सौदे के कुछ महीनों बाद दी गई। इस खुलासे के बाद भारत में विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, ने इसे राफेल सौदे से जोड़ते हुए सरकार पर क्रोनी कैपिटलिज्म का आरोप लगाया। कांग्रेस ने दावा किया कि यह टैक्स माफी अनिल अंबानी को राफेल डील में साझेदार बनाने के लिए एक तरह की "रिश्वत" थी। पार्टी ने इसे #RafaleChorChowkidar हैशटैग के साथ प्रचारित किया, यह सवाल उठाते हुए कि फ्रांस सरकार ने अनिल अंबानी की कंपनी पर इतनी मेहरबानी क्यों दिखाई। ### फ्रांस और रिलायंस का पक्ष रिलायंस डिफेंस और फ्रांस सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया। रिलायंस ने बयान जारी कर कहा कि टैक्स माफी का राफेल सौदे से कोई संबंध नहीं था। कंपनी ने दावा किया कि यह माफी फ्रांस के टैक्स नियमों के तहत दी गई थी और यह एक सामान्य प्रक्रिया थी। फ्रांस सरकार ने भी स्पष्ट किया कि टैक्स माफी का निर्णय स्वतंत्र था और इसका राफेल सौदे से कोई लेना-देना नहीं था। दसॉल्ट एविएशन ने कहा कि उन्होंने रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर के रूप में इसलिए चुना क्योंकि कंपनी भारत में रक्षा क्षेत्र में निवेश करने को तैयार थी। इसके अलावा, रिलायंस की सहायक कंपनी ने बाद में दसॉल्ट के साथ फाल्कन 2000 बिजनेस जेट बनाने की साझेदारी की, जो भारत में निजी रक्षा क्षेत्र की प्रगति को दर्शाता है।


सरकार और HAL का रुख भारत सरकार ने राफेल सौदे को पारदर्शी बताया और कहा कि HAL को दरकिनार करने का निर्णय व्यावसायिक था। सरकार के मुताबिक, HAL की तकनीकी और वित्तीय क्षमता राफेल जैसे जटिल प्रोजेक्ट के लिए उपयुक्त नहीं थी। हालांकि, विपक्ष ने इसे सरकारी कंपनी को कमजोर करने की साजिश करार दिया, यह दावा करते हुए कि HAL को अनदेखा कर अनिल अंबानी की कंपनी को फायदा पहुंचाया गया। ### हकीकत क्या है? इस मामले की सच्चाई अभी भी अस्पष्ट है, क्योंकि कोई ठोस सबूत नहीं मिला जो टैक्स माफी को राफेल सौदे से सीधे जोड़ता हो। निम्नलिखित बिंदु इसकी जटिलता को दर्शाते हैं: 

1. समय संयोग

टैक्स माफी का समय (2015-16) राफेल सौदे के साथ मेल खाता है, जिससे संदेह पैदा हुआ। 

2. फ्रांस और रिलायंस का दावा है कि टैक्स माफी एक नियमित प्रशासनिक निर्णय था, जो राफेल सौदे से असंबंधित था। 

राजनीतिक विवाद

भारत में यह मुद्दा राजनीतिक हथियार बन गया, जिसमें विपक्ष ने इसे भ्रष्टाचार का सबूत बताया, जबकि सरकार ने इसे बेबुनियाद आरोप करार दिया। 

 अनिल अंबानी की कंपनी को मिली टैक्स माफी का मामला एक जटिल और विवादास्पद मुद्दा है। हालांकि विपक्ष ने इसे भ्रष्टाचार से जोड़ा,