बांग्लादेश में हाल ही में एक चुनाव आयुक्त की जूतों से पिटाई की घटना ने न केवल वहां की सियासत में हलचल मचाई, बल्कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों के लिए भी एक गंभीर चेतावनी दी है। यह घटना भले ही बांग्लादेश की हो, लेकिन इसका संदेश भारत के लोकतंत्र के लिए एक कड़वी सच्चाई की तरह है। जब जनता को लगने लगता है कि उसका वोट बेमानी है और संस्थाएं सत्ता की कठपुतली बन चुकी हैं, तो लोकतंत्र अपनी संवैधानिक गरिमा खो देता है और भीड़ की हिंसक भाषा में बोलने लगता है।
बांग्लादेश की घटना का संदर्भ हाल ही में बांग्लादेश में एक चुनाव आयुक्त को जनता के गुस्से का शिकार होना पड़ा। इस घटना को वहां की सत्ता और चुनावी प्रक्रिया में जनता के अविश्वास से जोड़ा जा रहा है। जब लोग यह मानने लगते हैं कि चुनाव निष्पक्ष नहीं हैं और सत्ता केवल अपने हितों के लिए संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही है, तो उनकी हताशा हिंसा के रूप में सामने आती है। यह भारत के लिए एक सबक है, जहां लोकतांत्रिक संस्थाओं पर सवाल उठ रहे हैं।
भारत में लोकतंत्र का संकट भारत में हाल के वर्षों में कई ऐसे घटनाक्रम हुए हैं, जिन्होंने लोकतांत्रिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए हैं: -
चुनाव आयोग की भूमिका
विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग सरकार के इशारों पर काम कर रहा है। EVM पर सवाल उठाने वालों को राष्ट्रद्रोही करार देना और विपक्षी दलों के खिलाफ कार्रवाइयों में कथित पक्षपात ने इस संदेह को गहरा किया है। -
विपक्ष का दमन विपक्षी नेताओं पर केंद्रीय एजेंसियों जैसे ED और CBI के कथित दुरुपयोग के आरोप लगे हैं। विपक्ष का कहना है कि यह "राजनीतिक नसबंदी" का प्रयास है। -
संस्थाओं का मौन सुप्रीम कोर्ट, मीडिया, और नौकरशाही पर सरकार के दबाव के आरोप लगते रहे हैं। कई मौकों पर इन संस्थाओं की चुप्पी ने जनता के बीच अविश्वास को बढ़ाया है। -
EVM विवाद: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं, लेकिन इन सवालों को खारिज करने की जल्दबाजी ने जनता के संदेह को और गहरा किया है।
भीड़ का न्याय: एक खतरनाक संकेत जब जनता को लगता है कि वोट से कुछ नहीं बदलता और संस्थाएं सत्ता की ढाल बन चुकी हैं, तो वह व्यवस्था से भरोसा उठा लेती है। बांग्लादेश की घटना इसका उदाहरण है, जहां जनता ने गुस्से में आकर हिंसक रास्ता चुना। भारत में भी यदि लोकतांत्रिक संस्थाएं अपनी निष्पक्षता और जवाबदेही खो देंगी, तो जनता का गुस्सा सड़कों पर उतर सकता है। इतिहास गवाह है कि जब व्यवस्था न्याय को गिरवी रख देती है, तो भीड़ ही अंतिम जज बनती है।
भारत के लिए चेतावनी यह घटना भारत के लिए एक चेतावनी है। अगर: -
चुनाव आयोग निष्पक्षता के बजाय सत्ता का साथ देता दिखे,
सुप्रीम कोर्ट और अन्य संस्थाएं मौन रहकर जनता के सवालों को अनदेखा करें, मीडिया सरकार का प्रवक्ता बन जाए,
तो जनता का भरोसा टूटेगा। और जब भरोसा टूटता है, तो वह वोट की स्याही से नहीं, बल्कि गुस्से और हिंसा से जवाब दे सकती है। ### निष्कर्ष लोकतंत्र केवल वोट डालने की प्रक्रिया नहीं है; यह जनता के विश्वास और संस्थाओं की जवाबदेही का प्रतीक है। बांग्लादेश की घटना भारत को आगाह करती है कि अगर संस्थाएं सत्ता की कठपुतली बनेंगी, तो जनता उन्हें गद्दार समझकर जवाब देगी। चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट, मीडिया, और नौकरशाही को अपनी निष्पक्षता और स्वतंत्रता को फिर से स्थापित करना होगा, ताकि लोकतंत्र अपनी संवैधानिक भाषा में बोले, न कि भीड़ की अशब्द भाषा में।