महाराष्ट्र के ठाणे जिले के शाहापुर में रतनबाई दमानी स्कूल में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने शिक्षा तंत्र और बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मासिक धर्म की जांच के नाम पर कक्षा 6 से 10 तक की लगभग 125 छात्राओं को अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ा। इस घटना ने न केवल अभिभावकों और समाज को झकझोर दिया है, बल्कि स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा और गोपनीयता को लेकर गंभीर चिंताएं भी पैदा की हैं। मंगलवार, 8 जुलाई 2025 को रतनबाई दमानी स्कूल के शौचालय में खून के धब्बे मिलने के बाद स्कूल प्रशासन ने एक अत्यंत आपत्तिजनक कदम उठाया। स्कूल की प्रिंसिपल ने 10 से 15 वर्ष की आयु की छात्राओं को स्कूल के सभागार में बुलाया और प्रोजेक्टर पर शौचालय के फर्श पर खून के धब्बों की तस्वीरें दिखाईं। इसके बाद, छात्राओं को दो समूहों में बांटा गया—जिन्हें मासिक धर्म था और जिन्हें नहीं था। जिन छात्राओं ने कहा कि उन्हें मासिक धर्म नहीं हो रहा, उन्हें एक महिला चपरासी के साथ शौचालय में ले जाकर उनके कपड़े उतरवाए गए और उनकी निजी जांच की गई। इतना ही नहीं, मासिक धर्म की पुष्टि करने वाली छात्राओं से उनके अंगूठे के निशान लिए गए। इस पूरी प्रक्रिया में छात्राओं की गरिमा और गोपनीयता का घोर उल्लंघन किया गया।
जब छात्राएं घर पहुंचीं, तो उन्होंने रोते हुए अपने अभिभावकों को इस अपमानजनक घटना के बारे में बताया। गुस्साए अभिभावकों ने बुधवार, 9 जुलाई 2025 को स्कूल परिसर में प्रदर्शन किया और स्कूल प्रशासन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। अभिभावकों ने शाहापुर पुलिस स्टेशन में धरना दिया और शिकायत दर्ज की। शिकायत के आधार पर, पुलिस ने प्रिंसिपल, एक महिला चपरासी, चार शिक्षकों और दो ट्रस्टियों समेत आठ लोगों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 74 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का उपयोग) और धारा 76 (कपड़े उतारने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का उपयोग) के साथ-साथ बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत मामला दर्ज किया। प्रिंसिपल और महिला चपरासी को बुधवार रात गिरफ्तार कर लिया गया, और उन्हें 10 जुलाई को अदालत में पेश किया गया।
इस घटना ने छात्राओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला है। विशेषज्ञों और बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने स्कूल की इस कार्रवाई को बच्चों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन और सत्ता का दुरुपयोग बताया है। मासिक धर्म जैसे संवेदनशील विषय को शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से संबोधित करने के बजाय, स्कूल ने छात्राओं को अपमानित और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। अभिभावकों ने कहा, "मासिक धर्म के बारे में बच्चों को शिक्षित करने के बजाय, प्रिंसिपल ने उन्हें मानसिक दबाव में डाला। यह शर्मनाक है।"
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले की जांच के लिए निर्देश जारी किए हैं, और प्रिंसिपल को बर्खास्त करने का आदेश दिया गया है। विधानसभा में कांग्रेस के नाना पटोले और एनसीपी (एसपी) के जितेंद्र आव्हाड ने इस मुद्दे को उठाते हुए इसे महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य में शर्मनाक बताया। मंत्री ने सदन को आश्वासन दिया कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
यह घटना स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा, गोपनीयता और लैंगिक संवेदनशीलता की कमी को उजागर करती है। मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसे अपमान या शर्मिंदगी का कारण बनाने के बजाय, स्कूलों को इसके बारे में जागरूकता और सम्मानजनक शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए। यह मामला न केवल शिक्षा तंत्र की खामियों को दर्शाता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या हमारे स्कूल बच्चों, खासकर लड़कियों, के लिए सुरक्षित स्थान हैं? बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि स्कूलों में लैंगिक संवेदनशीलता और बाल संरक्षण नीतियों पर अनिवार्य प्रशिक्षण लागू किया जाए। साथ ही, इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है। यह घटना पूरे देश में स्कूलों को एक सबक देती है कि बच्चों की गरिमा और गोपनीयता का सम्मान सर्वोपरि है।