भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 2025-26 शैक्षणिक वर्ष के लिए नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप (NOS) के तहत 106 उम्मीदवारों को चुना था, लेकिन इनमें से केवल 40 छात्रों को ही स्कॉलरशिप प्रदान की गई है। शेष 66 दलित, पिछड़े और आदिवासी छात्रों को 'फंड की कमी' का हवाला देकर स्कॉलरशिप से वंचित कर दिया गया है। यह निर्णय उन होनहार छात्रों के लिए करारा झटका है, जो विदेश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना देख रहे थे। नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), डिनोटिफाइड, खानाबदोश और अर्ध-खानाबदोश जनजातियों, भूमिहीन कृषि मजदूरों और पारंपरिक कारीगरों के कम आय वाले छात्रों को मास्टर्स और पीएचडी पाठ्यक्रमों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इस योजना के तहत 125 छात्रों को हर साल विदेश में पढ़ाई के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है, जिसमें 115 स्थान SC, 6 स्थान डिनोटिफाइड, खानाबदोश और अर्ध-खानाबदोश जनजातियों, और 4 स्थान भूमिहीन कृषि मजदूरों और पारंपरिक कारीगरों के लिए आरक्षित हैं।
मंत्रालय ने 1 जुलाई 2025 को घोषणा की थी कि 106 उम्मीदवारों को चयनित सूची में रखा गया है, जबकि 64 को गैर-चयनित सूची में और 270 उम्मीदवारों को अस्वीकार कर दिया गया। चयनित 106 में से केवल 40 को ही प्रारंभिक तौर पर स्कॉलरशिप प्रदान की गई, और बाकी 66 को 'फंड की उपलब्धता' के अधीन रखा गया। यह स्थिति उन छात्रों के लिए निराशाजनक है, जिन्होंने शीर्ष 500 QS रैंकिंग वाले विश्वविद्यालयों में दाखिला लिया था, लेकिन अब उन्हें आर्थिक अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है।
सरकार का रवैया: क्या यह अधिकारों का हनन है?
यह पहली बार नहीं है जब दलित, आदिवासी और अन्य वंचित समुदायों के छात्रों को स्कॉलरशिप से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ा है। पहले भी मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (MANF) और नेशनल फेलोशिप फॉर शेड्यूल्ड कास्ट्स (NFSC) जैसी योजनाओं में देरी और अनियमितताओं की शिकायतें सामने आ चुकी हैं। उदाहरण के लिए, MANF के तहत 1,400 से अधिक पीएचडी स्कॉलरों को जनवरी 2025 से वजीफा भुगतान में देरी का सामना करना पड़ा।
विपक्षी नेताओं, विशेष रूप से कांग्रेस के राहुल गांधी, ने इस मुद्दे को उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर स्कॉलरशिप की देरी और कटौती को हल करने की मांग की है। उन्होंने कहा, "पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप में देरी और विफलताएं देश भर में व्यापक हैं।" विशेषज्ञों का मानना है कि जब भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का दावा कर रहा है, तब केवल 125 छात्रों को विदेश में पढ़ाई के लिए फंड न दे पाना सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाता है।
छात्रों का भविष्य अधर में
छात्रों के लिए यह स्थिति न केवल आर्थिक बल्कि मानसिक और शैक्षणिक रूप से भी हानिकारक है। एक प्रभावित छात्र ने कहा, "मैं शीर्ष 40 में नहीं हूं और अगले 40 को पत्र मिलने के बाद भी मुझे स्कॉलरशिप नहीं मिलेगी। मैं असमंजस में हूं कि क्या मुझे अन्य स्कॉलरशिप के लिए आवेदन करना चाहिए या इंतजार करना चाहिए। बिना फंड के मैं विदेश में पढ़ाई नहीं कर पाऊंगा, जो मेरे शैक्षणिक करियर को प्रभावित करेगा।"
सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने भी इस कदम की कड़ी आलोचना की है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कई यूजर्स ने इसे दलित और आदिवासी छात्रों के प्रति भेदभाव और उनकी शिक्षा के अधिकार का हनन बताया है। एक यूजर ने लिखा, "मोदी सरकार के पास प्रचार पर हजारों करोड़ खर्च करने के लिए पैसे हैं, लेकिन वंचित छात्रों की स्कॉलरशिप के लिए फंड नहीं है।" एक अन्य यूजर ने सवाल उठाया, "क्या गरीब और वंचित तबकों के होनहार बच्चों का कसूर यह है कि वे सत्ता में बैठे लोगों के बेटे-बेटियां नहीं हैं?"
क्या है समाधान?
यह स्थिति न केवल वंचित समुदायों के छात्रों के लिए अन्याय है, बल्कि यह भारत के भविष्य के निर्माण में भी बाधा डाल रही है। सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा के क्षेत्र में अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट करे और इन छात्रों के लिए तत्काल फंड उपलब्ध कराए। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को बजट आवंटन में पारदर्शिता लानी चाहिए और स्कॉलरशिप योजनाओं के लिए विशेष निगरानी तंत्र स्थापित करना चाहिए। इसके अलावा, छात्रों को सलाह दी जाती है कि वे अन्य विकल्पों की तलाश करें, जैसे कि फुलब्राइट-नेहरू फेलोशिप, JN टाटा एंडोमेंट, या राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाने वाली स्कॉलरशिप योजनाएं। हालांकि, इन विकल्पों की प्रतिस्पर्धा और सीमित सीटें छात्रों के लिए चुनौती बनी रहती हैं।[
निष्कर्
नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप का रुकना न केवल 66 छात्रों के सपनों को चकनाचूर कर रहा है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों पर भी सवाल उठाता है। सरकार को यह समझना होगा कि शिक्षा केवल व्यक्तिगत विकास का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक उत्थान का आधार है। दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों के छात्रों को उनके अधिकारों से वंचित करना न केवल अन्याय है, बल्कि यह देश के भविष्य को कमजोर करने वाला कदम भी है। सरकार को तत्काल इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए और इन छात्रों के लिए न्याय सुनिश्चित करना चाहिए।