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Tuesday, 1 July 2025

ऑपरेशन सिंदूर: विमान नुकसान और राजनीतिक बाध्यताओं का खुलासा

ऑपरेशन सिंदूर: विमान नुकसान और राजनीतिक बाध्यताओं का खुलासा
भारत और पाकिस्तान के बीच मई 2025 में हुए सैन्य संघर्ष, जिसे ऑपरेशन सिंदूर के नाम से जाना जाता है, ने हाल ही में एक नए विवाद को जन्म दिया है। इस ऑपरेशन के दौरान भारतीय वायु सेना (IAF) के कुछ लड़ाकू विमानों के नुकसान की खबरें सामने आई हैं, और इन नुकसानों का कारण राजनीतिक नेतृत्व द्वारा लगाई गई बाध्यताएं बताई जा रही हैं। इस मुद्दे ने न केवल सैन्य रणनीति पर सवाल उठाए हैं, बल्कि सरकार की पारदर्शिता और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर भी गंभीर बहस छेड़ दी है। 

ऑपरेशन सिंदूर का पृष्ठभूमि ऑपरेशन सिंदूर 7 मई, 2025 को शुरू हुआ था, जो 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब था, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया और जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में नौ आतंकी शिविरों को निशाना बनाया। इस ऑपरेशन का उद्देश्य आतंकी ढांचे को नष्ट करना था, लेकिन सैन्य प्रतिष्ठानों या हवाई रक्षा प्रणालियों पर हमला न करने का स्पष्ट निर्देश दिया गया था।
सैन्य नुकसान का खुलासा ऑपरेशन के दौरान भारतीय वायु सेना को कुछ विमानों का नुकसान हुआ। इसकी पहली आधिकारिक पुष्टि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने मई 2025 में सिंगापुर में शांगरी-ला वार्ता के दौरान की थी। उन्होंने ब्लूमबर्ग टीवी और रॉयटर्स को दिए साक्षात्कार में स्वीकार किया कि 7 मई को शुरुआती चरण में सामरिक गलतियों के कारण विमानों का नुकसान हुआ, हालांकि उन्होंने नुकसान की संख्या स्पष्ट नहीं की। जनरल चौहान ने पाकिस्तान के दावे को भी खारिज किया, जिसमें उसने छह भारतीय विमानों, जिसमें तीन राफेल शामिल थे, को मार गिराने की बात कही थी।


इसके बाद, 10 जून 2025 को इंडोनेशिया में एक सेमिनार के दौरान भारत के डिफेंस अटैच कैप्टन शिव कुमार ने इस मुद्दे पर और प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि हमने इतने सारे विमान खोए, लेकिन मैं मानता हूं कि कुछ विमान हमने खोए, और ऐसा केवल इसलिए हुआ क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व ने सैन्य प्रतिष्ठानों और उनकी हवाई रक्षा प्रणालियों पर हमला न करने की बाध्यता दी थी।” यह बयान न केवल सनसनीखेज था, बल्कि इसने सरकार पर गंभीर सवाल खड़े किए


 राजनीतिक विवाद और सरकार पर आरोप कैप्टन शिव कुमार के बयान ने विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस, को सरकार पर हमला करने का मौका दिया। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा और जयराम रमेश ने इस खुलासे को आधार बनाकर आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हुए नुकसान को छिपाने की कोशिश की और देश को गुमराह किया। खेड़ा ने इसे “मोदी सरकार और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पर सीधा आरोप” करार दिया। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाने और सर्वदलीय बैठक आयोजित करने से क्यों बच रही है।[


कांग्रेस ने दावा किया कि 6-7 मई को डीजी एयर ऑप्स, एयर मार्शल अवधेश कुमार भारती ने भी एक ब्रीफिंग में अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान की बात स्वीकार की थी, जब उन्होंने कहा, “हम युद्ध की स्थिति में हैं, और नुकसान युद्ध का हिस्सा है।”[


भारतीय दूतावास का स्पष्टीकरण विवाद बढ़ने के बाद, इंडोनेशिया में भारतीय दूतावास ने 29 जून 2025 को एक बयान जारी कर कैप्टन शिव कुमार के बयान को “संदर्भ से बाहर” बताया। दूतावास ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकी ढांचे को निशाना बनाना था, और सरकार ने सैन्य कार्रवाई को गैर-आक्रामक बनाए रखने का निर्देश दिया था। दूतावास ने यह भी जोड़ा कि भारतीय सशस्त्र बल लोकतांत्रिक मूल्यों के तहत काम करते हैं और राजनीतिक नेतृत्व के अधीन रहते हैं, जो पड़ोसी देशों (पाकिस्तान का परोक्ष उल्लेख) से अलग है।


क्या हैं सवाल? इस पूरे प्रकरण ने कई सवाल खड़े किए हैं:

 1. पारदर्शिता की कमी

 सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हुए नुकसान की जानकारी क्यों नहीं दी? क्या यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी था, या यह जनता से तथ्य छिपाने की कोशिश थी? 2. 

राजनीतिक बाध्यताएं

क्या सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला न करने का निर्णय सही था, या इसने भारतीय वायु सेना को कमजोर स्थिति में।

ऑपरेशन सिंदूर: विमान नुकसान और राजनीतिक बाध्यताओं का खुलासा

 *(continued)* जोर दिया? क्या इस निर्णय ने ऑपरेशन की सफलता को प्रभावित किया और भारतीय वायु सेना को नुकसान उठाने के लिए मजबूर किया? 3.

सैन्य स्वायत्तता

क्या सैन्य रणनीतियों पर राजनीतिक नियंत्रण का यह स्तर उचित है, या यह सैन्य प्रभावशीलता को कमजोर करता है? ### निष्कर्ष ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायु सेना के विमानों के नुकसान और कैप्टन शिव कुमार के बयान ने भारत में सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व के बीच संतुलन पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। यह मुद्दा न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के पहलुओं को उजागर करता है, बल्कि सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है। जनता को इस मामले में पूर्ण सत्य जानने का अधिकार है, और यह देखना बाकी है कि क्या सरकार इस पर स्पष्टता प्रदान करेगी। *यह लेख कॉपीराइट मुक्त है और सार्वजनिक उपयोग के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है।