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Tuesday, 26 August 2025

महानता पर शक: एक बुद्धिजीवी की डिग्री पर सवाल उठाने का पाप"

महानता पर शक: एक बुद्धिजीवी की डिग्री पर सवाल उठाने का पाप"
अरे साहब, ये क्या वक्त आ गया है! एक तरफ हम मंगल पर बस्ती बसाने की बात करते हैं, और दूसरी तरफ कुछ लोग हैं जो एक महान बुद्धिजीवी की डिग्री पर सवाल उठाने से नहीं चूकते। ज़रा गौर फरमाइए, एक ऐसी शख्सियत, जिसके टेबल पर दो-दो अंग्रेजी किताबें, वो भी आधी पढ़ी हुई, बिखरी पड़ी हों। किताबें भी कोई मामूली नहीं, मोटी-मोटी, विदेशी लेखकों वाली, जिन्हें देखकर ही आम आदमी का दिमाग चकरघिन्नी हो जाए। फिर एक एपल का लैपटॉप, वो भी खुला हुआ, स्क्रीन पर कोई गंभीर काम चल रहा हो—शायद दुनिया बदलने वाली थ्योरी लिख रहे हों, या फिर बस ट्विटर पर मीम्स का जवाब दे रहे हों, कौन पूछे? और ऊपर से एक अंग्रेजी अखबार, वो भी ऐसा जो पढ़ने के लिए आपको ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी साथ रखनी पड़े। अब ऐसे में कोई अगर इस महान आत्मा की डिग्री पर उंगली उठाए, या कहे, "अरे, डिग्री तो दिखाओ!" तो ये तो वही बात हुई कि आइंस्टीन से कहो, "भाई, E=MC² का सर्टिफिकेट लाओ!" अरे, ये बुद्धि का सूरज है, इसका प्रकाश किताबों, लैपटॉप और अखबार से चमकता है, डिग्री के कागज से नहीं! लेकिन हमारे समाज में कुछ लोग हैं, जिनके लिए डिग्री ही सबकुछ है। मानो बिना डिग्री के दिमाग किराए का हो। ऐसे लोगों को शायद खबर नहीं कि इस तरह की शंका करना कोई छोटा-मोटा गुनाह नहीं। ये तो ऐसा पाप है कि इसका प्रायश्चित न किसी किताब में लिखा है, न ही गूगल सर्च में मिलेगा। सोचिए, उस बेचारे लैपटॉप की आत्मा तक रो पड़ेगी, जिस पर आधी टाइप की थ्योरी अधूरी रह गई। तो ऐसी शंका करने वालों को एक नसीहत—अगली बार जब किसी बुद्धिजीवी की मेज पर अधूरी किताबें, खुला लैपटॉप और अंग्रेजी अखबार देखें, तो सवाल उठाने से पहले हजार बार सोच लें। वरना हो सकता है, आपका एक सवाल उस महान आत्मा के अगले नोबेल पुरस्कार को डिलीट कर दे, और फिर उस पाप का हिसाब न कोई ग्रंथ दे पाएगा, न ही कोई AI मॉडल!