जवाहर नवोदय विद्यालय में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने बच्चों के सामने एक ऐसा बयान दिया, जिसने शिक्षा और विज्ञान के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर सवाल खड़े कर दिए। जब उन्होंने बच्चों से पूछा, "अंतरिक्ष में यात्रा करने वाला पहला व्यक्ति कौन था?" और बच्चों ने उत्साह से जवाब दिया, "यूरी गागरिन!", तो ठाकुर ने इसे नकारते हुए कहा कि पहले अंतरिक्ष यात्री हनुमान जी थे। इस बयान ने न केवल बच्चों को हैरान किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि कुछ नेता किस तरह वैज्ञानिक तथ्यों को परंपराओं के साथ जोड़कर प्रस्तुत करते हैं। ठाकुर ने आगे कहा कि जब तक हम अपने हजारों वर्ष पुराने वेदों और परंपराओं की ओर नहीं लौटेंगे, हम अंग्रेजों द्वारा सिखाए गए ज्ञान तक सीमित रह जाएंगे। उन्होंने शिक्षकों और प्रिंसिपल से आग्रह किया कि वे किताबों से हटकर वेदों और परंपराओं पर ध्यान दें। लेकिन यह बयान उस समय और सवालिया बन जाता है, जब हम देखते हैं कि वैज्ञानिक प्रगति में अग्रणी देश जैसे अमेरिका, चीन, जर्मनी और जापान अपनी शिक्षा को तर्क, विज्ञान और नवाचार पर आधारित रखते हैं, न कि धार्मिक कथाओं पर। आलोचकों का कहना है कि यह विडंबना है कि एक ओर कुछ नेता देश के बच्चों को पौराणिक कथाओं की ओर ले जाना चाहते हैं, वहीं उनके अपने बच्चे विदेशों में आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ठाकुर का बेटा विदेश में पढ़ाई कर रहा है और संभवतः भविष्य में इंजीनियर, वैज्ञानिक या किसी बड़े संस्थान का हिस्सा बनेगा। यह दोहरा मापदंड तब और स्पष्ट होता है, जब देश के सामान्य बच्चों को ऐसी शिक्षा की ओर धकेला जा रहा है, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कम और धार्मिक विश्वासों से अधिक प्रेरित है। यह स्थिति देश के सामने एक बड़ी चुनौती पेश करती है। एक ओर हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व है, लेकिन दूसरी ओर हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारी शिक्षा प्रणाली बच्चों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाए। विज्ञान और तकनीक में प्रगति के लिए हमें तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना होगा, न कि ऐसी शिक्षा को, जो हमें अतीत में उलझाए रखे। देश का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपने बच्चों को कितना तार्किक और नवाचारी बनाते हैं, न कि हम उन्हें कितना गुमराह करते हैं।
"पहले अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन नही हनुमान जी थे अनुराग ठाकुर का बयान देश विदेश मे भारतीय शिक्षा पर सवाल"