गोंडा, उत्तर प्रदेश: बारिश की मार और यूरिया की किल्लत ने गोंडा के किसानों की कमर तोड़ दी है। बरसात में भीगती महिलाएं, घंटों लाइन में खड़े अन्नदाता, और खाद के लिए मची अफरा-तफरी की तस्वीरें किसी का भी कलेजा कांपने को मजबूर कर देंगी। ये हाल तब है, जब भाजपा सरकार "किसान सम्मान" और "विकास" का ढोल पीट रही है। गोंडा में किसानों को यूरिया के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। न तो स्थानीय प्रशासन उनकी सुध ले रहा है, न ही मुख्यमंत्री और न ही यह किसान विरोधी सरकार। खेतों में फसलें सूख रही हैं, लेकिन यूरिया की कालाबाजारी और सरकारी लापरवाही ने अन्नदाताओं को बेबस कर दिया है। किसान पूछ रहे हैं—जब खाद के लिए इतनी मारामारी है, तो सरकार के "किसान हितैषी" दावों का क्या मतलब? न CM सुनते हैं, न DM, और न ही ये सरकार, जिसके सारे इंजन आपस में टकरा रहे हैं। विकास के नारे हवा में उड़ रहे हैं, जबकि जमीनी हकीकत किसानों के आंसुओं से भीगी हुई है। यह तस्वीर न सिर्फ गोंडा की है, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश के किसानों की व्यथा को दर्शाती है। सरकार से सवाल है—क्या यही है किसानों के सम्मान का वादा?
यूपी में अन्नदाता की पुकार: यूरिया के लिए हाहाकार, सरकार का प्रचार बेकार