मात्र 72 घंटों के अंदर तीन प्रमुख देशों के प्रधानमंत्री अपनी सत्ता से वंचित हो गए। एशिया से लेकर यूरोप तक फैले ये बदलाव न केवल इन देशों की आंतरिक स्थिरता को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि वैश्विक कूटनीति, अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय गठबंधनों पर भी गहरा असर डाल सकते हैं। आइए, इन घटनाओं पर विस्तार से नजर डालें। ## 1. जापान: चुनावी हार के बाद इस्तीफा (7 सितंबर 2025) जापान, दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश, राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने रविवार को अपनी दलीय असहमति और हालिया चुनावों में अपनी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) की बुरी हार के कारण इस्तीफा दे दिया। इशिबा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उन्होंने अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के बाद यह कदम उठाया, ताकि पार्टी में गहरा विभाजन रोका जा सके। यह घटना जापान जैसे स्थिर लोकतंत्र के लिए चौंकाने वाली है। हाल के चुनावों में दक्षिणपंथी उभार और अमेरिका के साथ तनावपूर्ण व्यापार संबंधों ने इशिबा की सरकार को कमजोर कर दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अस्थिरता बढ़ सकती है, खासकर एशियाई क्षेत्र में। संभावित उत्तराधिकारियों में सानाे ताकाइची और शिनजिरो कोइजुमी के नाम प्रमुख हैं, लेकिन नई नेतृत्व चुनाव से पहले नीतिगत अनिश्चितता बनी रहेगी।
2. फ्रांस: अविश्वास प्रस्ताव में हार (8 सितंबर 2025) फ्रांस में राजनीतिक अस्थिरता चरम पर पहुंच गई है। प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बेयरू की सरकार संसद में अविश्वास प्रस्ताव हार गई, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। यह घटना राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की स्नैप चुनावों के बाद पैदा हुई विभाजित संसद का परिणाम है, जहां चरम दक्षिणपंथी और वामपंथी गुटों ने मिलकर सरकार को गिरा दिया। बेयरू का कार्यकाल मात्र नौ महीने का रहा, जो 1962 के बाद पहली बार है जब फ्रांसीसी सरकार अविश्वास में गिरी। बजट विवादों, सार्वजनिक ऋण और कटौती योजनाओं पर असहमति मुख्य कारण बने। यूरोप के इस प्रमुख देश की अस्थिरता यूरोपीय संघ (ईयू) और नाटो की राजनीति को प्रभावित कर सकती है। मैक्रों को अब नया प्रधानमंत्री चुनना होगा, संभवतः वामपंथी दलों से, लेकिन संसदीय गतिरोध बरकरार रहने की आशंका है। इससे फ्रांस की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ेगा, जिसमें 2026 के बजट को फिर से तैयार करना शामिल है।
3. नेपाल: भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों के आगे झुकना (9 सितंबर 2025) नेपाल में जनाक्रोश ने चरम रूप धारण कर लिया। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया, जब भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों में 19 लोगों की मौत के बाद हिंसा भड़क उठी। प्रदर्शनकारी सोशल मीडिया प्रतिबंध, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अभिजात वर्ग के खिलाफ सड़कों पर उतरे, जिसके परिणामस्वरूप संसद भवन में आग लगा दी गई और हवाई अड्डा बंद कर दिया गया। ओली, जो चार बार प्रधानमंत्री रह चुके थे, को जनता के गुस्से और कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर दबाव का सामना करना पड़ा। राजधानी काठमांडू से लेकर ग्रामीण इलाकों तक फैले आंदोलनों ने उन्हें कुर्सी छोड़ने पर मजबूर कर दिया। सेना को सड़कों पर तैनात किया गया है, लेकिन उत्तराधिकारी की अनिश्चितता बनी हुई है। यह घटना नेपाल की नाजुक लोकतांत्रिक व्यवस्था को उजागर करती है, जहां युवा पीढ़ी की निराशा भ्रष्टाचार के खिलाफ विद्रोह का रूप ले रही है। ## वैश्विक प्रभाव: एक नई राजनीतिक हलचल? ये तीन घटनाएं—जापान में चुनावी असफलता, फ्रांस में संसदीय विद्रोह और नेपाल में जन-आंदोलन—दुनिया भर में सत्ता के पतन का संकेत दे रही हैं। एशिया और यूरोप में ये बदलाव वैश्विक अर्थव्यवस्था, व्यापार समझौतों और क्षेत्रीय सुरक्षा पर असर डालेंगे। जहां जापान अमेरिकी संबंधों पर केंद्रित है, वहीं फ्रांस ईयू की एकजुटता को चुनौती दे रहा है, और नेपाल दक्षिण एशिया में अस्थिरता बढ़ा सकता है। यह दौर राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी और जनता की बढ़ती असंतोष को दर्शाता है। क्या ये बदलाव नई स्थिरता लाएंगे या और अराजकता? आने वाले दिनों में दुनिया की नजर इन देशों पर टिकी हुई है।