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Friday, 5 September 2025

पंजाब में बाढ़: कुदरती आपदा या कृत्रिम संकट?

पंजाब में बाढ़: कुदरती आपदा या कृत्रिम संकट?
पंजाब और उत्तर भारत में बाढ़ की समस्या दशकों से एक गंभीर चुनौती रही है। सिंधु जल समझौता (Indus Water Treaty), जो 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ, का उद्देश्य न केवल जल बंटवारे को सुनिश्चित करना था, बल्कि बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं को नियंत्रित करना भी था। इस समझौते के तहत, व्यास, रावी और सतलुज नदियों का जल भारत को आवंटित हुआ, जबकि सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का जल पाकिस्तान को मिला। फिर भी, पिछले चार दशकों में पंजाब में बाढ़ नियंत्रण में भारत सरकार की असफलता ने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या यह असफलता केवल प्राकृतिक आपदा का परिणाम है, या कृत्रिम संकट की ओर इशारा करती है? पंजाब की नदियों का भौगोलिक महत्व समझना आवश्यक है। व्यास और सतलुज नदियां पंजाब में मिलकर एक संयुक्त धारा बनाती हैं, जिसे सतलुज के नाम से जाना जाता है। यह धारा आगे चलकर पाकिस्तान में चेनाब नदी से मिलती है, और चेनाब अंततः मिठन कोट के पास सिंधु नदी में समाहित हो जाती है। इस प्रकार, व्यास और सतलुज का जल अप्रत्यक्ष रूप से सिंधु नदी में पहुंचता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करने की कोशिशों ने अनजाने में पंजाब में कृत्रिम आपदा को जन्म दिया है? पंजाब में बाढ़ नियंत्रण के लिए बांधों और नहरों का निर्माण किया गया, 
जैसे सतलुज पर भाखड़ा बांध और रावी पर रंजीत सागर बांध। इन बांधों का उद्देश्य सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण दोनों था। हालांकि, हाल के दशकों में बाढ़ की घटनाएं बार-बार सामने आई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बांधों से पानी के अचानक छोड़े जाने, अपर्याप्त जल प्रबंधन और नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में हस्तक्षेप ने स्थिति को और जटिल किया है। उदाहरण के लिए, भारी बारिश के दौरान बांधों से पानी की अनियंत्रित रिहाई ने निचले इलाकों में बाढ़ को बढ़ावा दिया है। सिंधु जल समझौते का पालन करते हुए भारत ने व्यास और सतलुज के जल का उपयोग बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन इसका असर प्राकृतिक जल प्रवाह पर पड़ा। कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि नदियों के प्राकृतिक मार्ग में बदलाव और बांधों से पानी का असंतुलित वितरण बाढ़ की तीव्रता को बढ़ा सकता है। यह सवाल उठता है कि क्या समझौते के तहत जल प्रबंधन की नीतियां पंजाब में बाढ़ को कृत्रिम आपदा में बदल रही हैं? इसके अलावा, प्रशासन की प्राथमिकताएं भी सवालों के घेरे में हैं। एक ओर जहां बिहार में बांधों को लेकर राजनीतिक तमाशा हो रहा है, वहीं पंजाब और उत्तर भारत की बाढ़ आपदा पर संवेदना और ठोस कार्रवाई का अभाव दिखता है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत और पुनर्वास के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। साथ ही, बांधों के प्रबंधन, नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बनाए रखने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखकर दीर्घकालिक नीतियां बनानी होंगी। 

 पंजाब में बाढ़ की समस्या केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि अपर्याप्त जल प्रबंधन और नीतिगत कमियों का परिणाम हो सकती है। सरकार को चाहिए कि वह बाढ़ नियंत्रण के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग करे, बांधों से पानी के रिलीज को नियंत्रित करे और स्थानीय समुदायों को राहत प्रदान करे। यह समय है कि प्रशासन इस कथित कृत्रिम आपदा को गंभीरता से ले और पंजाब के लोगों को इस संकट से निजात दिलाए।