अरब जगत के प्रसिद्ध विश्लेषक अब्दुलबारी अतवान ने रियाज़ और इस्लामाबाद के बीच रक्षा संधि पर हस्ताक्षर को ज़ायोनी शासन के लिए एक बड़ा झटका क़रार दिया है।
अतवान ने राय अल-यौम अख़बार में लिखा कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मुहम्मद शाहबाज़ शरीफ़ द्वारा हस्ताक्षरित यह रणनीतिक रक्षा संधि, एक अभूतपूर्व सैन्य और राजनीतिक बदलाव है और ज़ायोनी कब्ज़ाधारी इस्राइल के लिए यह एक बहुत ही मज़बूत संदेश है कि इस्लामी दुनिया कोई साझा क्षेत्र नहीं है और वह परमाणु हतोत्साहन से मुक्त नहीं है।
अतवान ने आगे कहा कि यह संधि शायद एक इस्लामी नाटो की प्रारंभिक कड़ी हो सकती है, खासकर उस स्थिति में जब दुनिया बड़े बदलाव के कगार पर है और चीन अमेरिकी साम्राज्य के खंडहरों पर वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है जो आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक रूप से पतन की ओर अग्रसर है।
उन्होंने इस समझौते को तेजी से लागू करने के कारणों को इस प्रकार बताया: डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थन में हाल ही में इस्राइल का क़तर पर हमला; नेतन्याहू द्वारा “ग्रेटर इज़राइल” योजना का सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत होना; अमेरिका की नीतियों पर इस्राइल का गहरा नियंत्रण और गाज़ा में नरसंहार के लिए वाशिंगटन का बिना शर्त समर्थन।
अतवान ने आगे उम्मीद जताई कि यह संधि इस्लामी दुनिया के हित में होगी और एक व्यापक गठबंधन की नींव रखेगी, जिसमें सभी इस्लामी देश, जिनमें ईरान भी शामिल है, शामिल होंगे। उन्होंने हाल ही में तेहरान और रियाद के बीच संबंधों को गर्मजोशी से याद किया और ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव अली लारीजानी के सऊदी अरब दौरे को दो देशों के बीच इस्राइल और अमेरिका के दबाव के खिलाफ बढ़ती सहयोग का प्रतीक बताया। mm