नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े 'बड़े साजिश' मामले में छात्र कार्यकर्ताओं उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और शिफा-उर-रहमान की जमानत याचिकाओं पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने मामले की अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को तय की है। वकीलों ने तर्क दिया कि अभियुक्त पांच साल से अधिक समय से जेल में हैं और अभी तक मुकदमे की शुरुआत भी नहीं हुई है, जो संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट के 2 सितंबर 2025 के फैसले के खिलाफ दायर की गई हैं, जिसमें इनकी जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि प्रदर्शनों के बहाने 'षड्यंत्रपूर्ण' हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अभियुक्तों ने सभी आरोपों से इनकार किया है और दावा किया है कि यह राजनीतिक रूप से प्रेरित कार्रवाई है। दिल्ली पुलिस का कहना है कि अभियुक्त दंगों के पीछे की साजिश के मास्टरमाइंड थे, जिसमें 53 लोगों की मौत और सैकड़ों घायल हुए थे।
अभियुक्तों का दावा: पांच साल की हिरासत बिना ट्रायल वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और सिद्धार्थ देव ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखा। सिंघवी ने कहा, "याचिकाकर्ता छात्र हैं और पांच साल से ज्यादा समय से जेल में सड़ रहे हैं। ट्रायल शुरू होने में देरी हो रही है।" उन्होंने अंतरिम जमानत की अर्जी पर भी नोटिस जारी करने का अनुरोध किया। जस्टिस कुमार ने स्पष्ट किया कि अदालत मुख्य याचिका का ही अंतिम निपटारा करेगी। उमर खालिद, जो जेएनयू के पूर्व छात्र हैं, सितंबर 2020 से जेल में हैं। उनकी पहली जमानत याचिका मार्च 2022 में ट्रायल कोर्ट ने खारिज की थी, जबकि शरजील इमाम जनवरी 2020 से हिरासत में हैं। गुलफिशा फातिमा को पुलिस ने पूर्वी दिल्ली में महिलाओं को प्रदर्शनों के लिए जुटाने वाली मुख्य साजिशकर्ता बताया है। अभियुक्तों का कहना है कि कई सह-आरोपी, जैसे असिफ इकबाल तन्हा, सफूरा जारगर, देवांगना कालिता और नताशा नरवाल को पहले ही जमानत मिल चुकी है। वे दावा करते हैं कि उन्हें बिना मुकदमे के अनिश्चितकालीन हिरासत में रखना असंवैधानिक है।
मामला: यूएपीए के तहत साजिश का आरोप यह मामला फरवरी 2020 के उत्तर-पूर्व दिल्ली दंगों से जुड़ा है, जो नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान भड़के थे। अभियुक्तों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत आपराधिक साजिश, दंगा भड़काना और अवैध जमावड़ा करने का आरोप है। दिल्ली पुलिस का दावा है कि उमर खालिद के भाषण, शरजील इमाम की भड़काऊ टिप्पणियां और गुलफिशा फातिमा की महिलाओं को संगठित करने की कोशिशें दंगों को भड़काने का हिस्सा थीं। हाईकोर्ट ने 2 सितंबर को नौ अभियुक्तों की जमानत याचिकाएं खारिज की थीं, जिनमें उमर खालिद, शरजील इमाम के अलावा मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, अब्दुल खालिद सैफी और शादाब अहमद शामिल थे। एक अन्य आरोपी तसलीम अहमद की याचिका को अलग बेंच ने खारिज किया था। हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपों की प्रथम दृष्टि पर सत्यता साबित होती है और यह यूएपीए के दायरे में आता है।
कानूनी इतिहास: लंबी कानूनी लड़ाई यह मामला वर्षों से अदालतों में लंबित है। उमर खालिद ने फरवरी 2024 में अपनी जमानत याचिका वापस ले ली थी, लेकिन मई 2024 में नई याचिका ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दी। शरजील इमाम पर कई राज्यों में राजद्रोह और यूएपीए के तहत कई एफआईआर दर्ज हैं, लेकिन दिल्ली, अलीगढ़ और गुवाहाटी के कुछ मामलों में उन्हें जमानत मिल चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट जमानत देता है, तो यह यूएपीए की जमानत प्रावधानों की व्याख्या पर महत्वपूर्ण फैसला साबित होगा। वहीं, अगर हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रहा, तो राज्य को आतंकवाद विरोधी कानूनों में व्यापक शक्तियां मिलेंगी। अभियुक्तों के वकीलों ने तर्क दिया कि लंबी हिरासत के बावजूद ट्रायल न शुरू होना न्यायिक प्रक्रिया का मजाक उड़ा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह नोटिस दिल्ली पुलिस को जवाब देने का मौका देगा, जहां वे साजिश के साक्ष्यों का हवाला देकर जमानत का विरोध करेंगे। यह मामला न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सवाल उठाता है, बल्कि यूएपीए जैसे कठोर कानूनों के दुरुपयोग की बहस को भी ताजा कर रहा है। अगली सुनवाई में कोर्ट का फैसला अभियुक्तों के भविष्य को तय करेगा।