दक्षिण एशियाई देशों में हाल के वर्षों में राजनीतिक अस्थिरता की लहर ने वैश्विक मंच पर चिंता बढ़ा दी है। श्रीलंका और बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद अब नेपाल में भी राजनीतिक उथल-पुथल की खबरें सुर्खियों में हैं। इन तीनों देशों में हुए तख्तापलट के पीछे एक विदेशी शक्ति और एक प्रभावशाली बिजनेसमैन की भूमिका पर गंभीर संदेह जताया जा रहा है। सूत्रों के हवाले से दावा किया जा रहा है कि इन अस्थिरताओं के पीछे न केवल भू-राजनीतिक स्वार्थ हैं, बल्कि एक बड़े बिजनेसमैन द्वारा कथित तौर पर फंडिंग भी की गई है, जिसके हित इन देशों में गहरे पैठ बनाए हुए हैं। श्रीलंका में आर्थिक संकट के बाद सत्ता परिवर्तन, बांग्लादेश में अचानक उभरे राजनीतिक उथल-पुथल और अब नेपाल में सत्ता के खेल ने क्षेत्रीय विश्लेषकों को हैरान कर दिया है।
इन घटनाओं में एक समानता देखी जा रही है—एक ही देश और एक ही बिजनेसमैन का नाम बार-बार सामने आ रहा है। गोपनीय सूत्रों के अनुसार, इस बिजनेसमैन के व्यापारिक हित इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं और प्राकृतिक संसाधनों से गहरे जुड़े हैं। माना जा रहा है कि इन तख्तापलटों के जरिए क्षेत्रीय प्रभुत्व स्थापित करने और आर्थिक लाभ कमाने की रणनीति अपनाई गई है। हालांकि, इन आरोपों की अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे ने गंभीर चर्चा को जन्म दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि दक्षिण एशिया में अस्थिरता क्षेत्रीय शांति और विकास के लिए खतरा बन सकती है।
ऐसे में भारत जैसे बड़े देशों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, जो क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए नेपाल और अन्य पड़ोसी देशों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इस सिलसिले में यह भी जरूरी है कि इन तख्तापलटों के पीछे की सच्चाई को उजागर करने के लिए स्वतंत्र जांच की जाए। यदि विदेशी शक्तियों और बिजनेसमैन की भूमिका सिद्ध होती है, तो यह दक्षिण एशियाई देशों के लिए एकजुट होने और ऐसी साजिशों का सामना करने का समय है। क्षेत्रीय सहयोग और पारदर्शिता ही इस क्षेत्र को स्थिरता और समृद्धि की ओर ले जा सकती है।