नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में अफवाहों और शिगूफों की कोई कमी नहीं रही, लेकिन पिछले एक दशक में यह जैसे राष्ट्रीय व्यवसाय बन गया है। ताजा शिगूफा बिहार की वोटर लिस्ट में ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ का है, जिसे लेकर खूब हंगामा मचाया गया। खासकर बिहार के सीमांचल क्षेत्र (पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज) में, जहां मुस्लिम आबादी अधिक है, यह अफवाह जोर-शोर से फैलाई गई कि यहां बांग्लादेशी घुसपैठिए भरे पड़े हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह चिंता वाकई विदेशी नागरिकों की है, या इसका निशाना मुस्लिम समुदाय है? हकीकत की बात करें तो बिहार की भौगोलिक स्थिति इस शिगूफे की पोल खोल देती है। बिहार की सीमा बांग्लादेश से नहीं लगती। अगर कोई अवैध रूप से बिहार में प्रवेश करेगा, तो संभावना नेपाल से आने की ज्यादा है, क्योंकि भारत-नेपाल सीमा खुली है। फिर भी, घुसपैठ का डर सिर्फ ‘बांग्लादेशियों’ को लेकर क्यों उछाला जा रहा है? यह सवाल अपने आप में कई सच्चाइयों को उजागर करता है। जनवरी 2024 में बिहार की वोटर लिस्ट की गहन जांच की गई थी। इस जांच में एक भी विदेशी नागरिक नहीं पाया गया। इसके बावजूद, कुछ राजनीतिक दलों और समूहों ने सीमांचल क्षेत्र को निशाना बनाकर ‘घुसपैठिए’ वाली कहानी को हवा दी। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं के जवाब में चुनाव आयोग ने 789 पन्नों का एक विस्तृत हलफनामा दाखिल किया। इस हलफनामे में ‘बांग्लादेशी’ या ‘विदेशी’ शब्द का एक बार भी जिक्र नहीं है। हलफनामे के अनुसार, वोटर लिस्ट में घुसपैठियों की संख्या शून्य है।
यह शिगूफा न केवल तथ्यों से परे है, बल्कि यह सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने और एक खास समुदाय को बदनाम करने की कोशिश भी प्रतीत होता है। सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में भी यह साफ हो चुका है कि वोटर लिस्ट से किसी भी पात्र मतदाता का नाम बिना नोटिस और सुनवाई के नहीं हटाया जाएगा। चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का उद्देश्य मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करना है, न कि किसी समुदाय को निशाना बनाना।
इस पूरे प्रकरण से एक बात साफ है—अफवाहें और शिगूफे राजनीतिक लाभ के लिए फैलाए जाते हैं, लेकिन जब तथ्य सामने आते हैं, तो उनकी हवा निकल जाती है। बिहार की जनता और देश के नागरिकों को ऐसे शिगूफों से सावधान रहने की जरूरत है, जो समाज को बांटने और भय का माहौल बनाने का काम करते हैं।