महाराष्ट्र के सातारा जिले में एक ऐसी घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया, जिसने सिस्टम की पोल खोल दी। एक 28 वर्षीय महिला डॉक्टर, जो फलटन उप-जिला अस्पताल में मेडिकल ऑफिसर थी, ने 23 अक्टूबर 2025 की रात अपनी जिंदगी खत्म कर ली। उनकी हथेली पर खून से लिखा एक नोट मिला, जिसमें उन्होंने साफ लिखा: "पुलिस सब-इंस्पेक्टर गोपाल बडाने ने मेरा 4 बार बलात्कार किया।" इसके अलावा, एक चार पेज का सुसाइड नोट भी बरामद हुआ, जिसमें उन्होंने अपनी पीड़ा और मानसिक यातनाओं का जिक्र किया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि गोदी मीडिया और तथाकथित नेशनल चैनल्स इस पर चुप क्यों हैं? अगर यह घटना बंगाल या किसी विपक्षी राज्य में हुई होती, तो क्या BJP का डेलिगेशन सड़कों पर न होता और टीवी चैनल्स 24x7 चीख-चीखकर 'जंगलराज' का शोर न मचाते?
घटना का खुलासा: एक डॉक्टर की दर्दनाक कहानी सातारा के फलटन में तैनात यह डॉक्टर पिछले दो साल से सरकारी अस्पताल में सेवा दे रही थी। बीड जिले की रहने वाली इस युवती ने अपनी मेहनत से मेडिकल की पढ़ाई पूरी की थी, लेकिन उसे क्या पता था कि सिस्टम ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन जाएगा। सुसाइड नोट के मुताबिक, सब-इंस्पेक्टर गोपाल बडाने ने पिछले पांच महीनों में चार बार उसका यौन शोषण किया। इसके अलावा, उनके लैंडलॉर्ड के बेटे प्रशांत बांकर ने भी उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। नोट में यह भी खुलासा हुआ कि उसे फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट और ऑटोप्सी रिपोर्ट तैयार करने का दबाव डाला जा रहा था – न केवल पुलिस अधिकारियों द्वारा, बल्कि एक सांसद और उनके सहयोगियों द्वारा भी। डॉक्टर ने जून 2025 में डिप्टी एसपी, फलटन को लिखित शिकायत दी थी, जिसमें बडाने और दो अन्य पुलिस अधिकारियों – सब-डिविजनल पीआई पाटिल और एपीआई लाडपुत्रे – का नाम लिया गया था। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टा, उसे और धमकियां मिलीं। आखिरकार, तंग आकर उसने फलटन के एक होटल में फंदे से लटककर अपनी जान दे दी।
पुलिस और सरकार की प्रतिक्रिया: देरी से जागा सिस्टम घटना के बाद सियासी हलचल तेज हुई। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सातारा एसपी तुषार डोशी से बात की, जिसके बाद गोपाल बडाने को सस्पेंड कर दिया गया। 25 अक्टूबर को प्रशांत बांकर को पुणे के एक फार्महाउस से गिरफ्तार किया गया और उसे चार दिन की पुलिस कस्टडी में भेजा गया। 26 अक्टूबर को बडाने ने फलटन रूरल पुलिस स्टेशन में सरेंडर कर दिया। पुलिस ने IPC की धारा 376 (बलात्कार) और 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत FIR दर्ज की है। महाराष्ट्र स्टेट कमीशन फॉर वुमन ने भी मामले का संज्ञान लिया और फरार आरोपियों की तलाश तेज करने का निर्देश दिया। MARD (महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ रेसिडेंट डॉक्टर्स) ने काली पट्टी प्रदर्शन शुरू किया और डॉक्टरों के लिए सुरक्षित कार्यस्थल की मांग की। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये कदम पहले नहीं उठाए जा सकते थे?
महाराष्ट्र बनाम बंगाल: दोहरा रवैया क्यों? अगर यही घटना पश्चिम बंगाल, दिल्ली या किसी विपक्षी राज्य में हुई होती, तो गोदी मीडिया का रवैया कुछ और ही होता। टीवी स्टूडियो में एंकर चीख-चीखकर सरकार को कटघरे में खड़ा करते। BJP का डेलिगेशन सड़कों पर उतरकर 'महिला सुरक्षा' का नारा बुलंद करता। लेकिन महाराष्ट्र में, जहां 'डबल इंजन' की BJP-शिवसेना सरकार है, सब खामोश हैं। न कोई ब्रेकिंग न्यूज, न कोई डिबेट। कांग्रेस नेता सुप्रिया सुले ने ट्वीट कर कहा, "यह घटना साबित करती है कि महाराष्ट्र में महिलाएं असुरक्षित हैं। गोदी मीडिया की चुप्पी शर्मनाक है।" यह दोहरा रवैया साफ दिखाता है कि गुनाह की गंभीरता नहीं, बल्कि सियासी रंग तय करता है कि कौन सा मुद्दा उठेगा और कौन सा दब जाएगा। अगर बंगाल में ऐसा होता, तो 'जंगलराज' की हेडलाइंस चल रही होतीं। लेकिन महाराष्ट्र में इसे 'डिप्रेशन' का मामला बताकर फाइल बंद करने की कोशिश हो रही है।
सवाल जो जवाब मांगते हैं -
मीडिया की चुप्पी: गोदी मीडिया इस मामले पर खामोश क्यों है? क्या सत्ता का डर है या सियासी दबाव? -
पुलिस की नाकामी: जब डॉक्टर ने जून में शिकायत की थी, तब कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या पुलिस ने आरोपी को बचाने की कोशिश की? -
सांसद का रोल: सुसाइड नोट में सांसद का जिक्र है। उनका नाम क्यों नहीं सामने आ रहा? -
महिला सुरक्षा क्या यही 'अमृतकाल' है, जहां एक डॉक्टर को अपनी जान देकर न्याय मांगना पड़ता है?
आगे की राह: न्याय की उम्मीद पुलिस जांच में डॉक्टर के फोन रिकॉर्ड और मैसेज की पड़ताल हो रही है। अगर सुसाइड नोट में सांसद और अन्य अधिकारियों के खिलाफ आरोप सही साबित हुए, तो यह मामला और गंभीर हो सकता है। महिला संगठन और डॉक्टर समुदाय SIT जांच की मांग कर रहे हैं। यह वक्त है कि सिस्टम अपनी कमियों को सुधारे, ताकि भविष्य में कोई और महिला ऐसी त्रासदी का शिकार न बने। गुनाह, गुनाह होता है – चाहे वह महाराष्ट्र में हो या बंगाल में। सवाल यह नहीं कि सत्ता में कौन है, सवाल यह है कि इंसाफ कब मिलेगा? यह घटना न केवल महाराष्ट्र, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि अगर सिस्टम नहीं सुधरा, तो 'विकसित भारत' सिर्फ एक नारा बनकर रह जाएगा।