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Friday, 10 October 2025

अफगान विदेश मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों पर पाबंदी: रुबीका भाईजान सहित किसी को नहीं मिली एंट्री

अफगान विदेश मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों पर पाबंदी: रुबीका भाईजान सहित किसी को नहीं मिली एंट्री
अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी की भारत यात्रा के दौरान दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस ने लैंगिक भेदभाव का नंगा चेहरा दिखा दिया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसी भी महिला पत्रकार को प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई, जो तालिबान शासन की महिलाओं के प्रति कट्टर नीतियों का प्रतिबिंब माना जा रहा है। प्रमुख पत्रकार रुबीका लियाकत समेत कई महिला पत्रकारों को पहले से ही शर्त रखी गई थी कि वे शामिल न हों, जिससे पत्रकार बिरादरी में भारी आक्रोश फैल गया है। 

  अमीर खान मुत्तकी गुरुवार को भारत पहुंचे और शुक्रवार को अफगानिस्तान दूतावास में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। यह कॉन्फ्रेंस भारत-अफगानिस्तान संबंधों, व्यापार, सुरक्षा और विकास सहायता पर चर्चा के बाद हुई। लेकिन दूतावास ने आमंत्रण केवल पुरुष पत्रकारों को ही भेजे, जबकि महिला पत्रकारों को साफ मना कर दिया गया। सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीरों में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कोई महिला पत्रकार नजर नहीं आ रही। 
प्रसिद्ध ट्रोलर पत्रकार रुबीका लियाकत, जो इस आयोजन को कवर करने गई थीं, को भी प्रवेश से रोक दिया गया। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह घटना न केवल पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि महिलाओं के अधिकारों का भी अपमान है। अन्य महिला पत्रकारों ने भी ड्रेस कोड का पालन करने के बावजूद उन्हें बाहर रखे जाने की शिकायत की। 

तालिबान का बचाव और भारत सरकार की प्रतिक्रिया प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब महिलाओं के अधिकारों पर सवाल उठा, तो मुत्तकी ने इसे "प्रोपेगैंडा" करार देते हुए कहा कि अफगानिस्तान में शरिया कानून के तहत सभी को अधिकार मिले हुए हैं। उन्होंने दावा किया कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद (2021 से) अफगानिस्तान में शांति स्थापित हुई है और रोजाना 200-400 मौतें रुक गई हैं। लेकिन उन्होंने महिलाओं की स्थिति पर सीधा जवाब देने से किनारा कर लिया, बल्कि हर देश के अपने रीति-रिवाज और कानून होने की बात कही। भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने स्पष्ट किया कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के आमंत्रण अफगानिस्तान के मुंबई कंसुलेट ने भेजे थे, जिसमें भारतीय पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी। MEA ने अफगान पक्ष को महिला पत्रकारों को शामिल करने का सुझाव दिया था, लेकिन तालिबान अधिकारियों ने इसे नजरअंदाज कर दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने ट्वीट कर पुरुष पत्रकारों की आलोचना की और कहा कि उन्हें बाहर रहने पर विरोध में कॉन्फ्रेंस छोड़ देनी चाहिए थी। 

पत्रकारों और सोशल मीडिया पर हंगामा यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जहां #GenderDiscrimination और #TalibanMisogyny जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। टाइम्स ऑफ इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार राजन पंडित ने लिखा, "अफगान विदेश मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिलाओं को अनुमति न देना अस्वीकार्य है।" कई यूजर्स ने भारतीय सरकार से सवाल किया कि आखिर तालिबान की इस नीति को क्यों बर्दाश्त किया जा रहा है, जबकि अफगानिस्तान में महिलाओं को माध्यमिक शिक्षा, नौकरी और सार्वजनिक स्थानों से वंचित रखा गया है। अफगानिस्तान में तालिबान शासन के बाद महिलाओं पर लगाए गए प्रतिबंधों की वैश्विक आलोचना हो चुकी है। संयुक्त राष्ट्र समेत कई संगठनों ने इसे मानवाधिकार उल्लंघन बताया है। भारत ने हमेशा अफगानिस्तान में समावेशी शासन की वकालत की है, लेकिन यह घटना द्विपक्षीय संबंधों में एक काला धब्बा बन गई है। 

आगे की उम्मीदें मुत्तकी की यह यात्रा अफगानिस्तान के लिए ऐतिहासिक मानी जा रही है, क्योंकि तालिबान के सत्ता में आने के बाद यह पहला उच्च स्तरीय दौरा है। दोनों देशों के बीच व्यापार और मानवीय सहायता पर चर्चा हुई, लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस की यह घटना ने सभी सकारात्मक चर्चाओं पर साया डाल दिया। पत्रकार संगठनों ने सरकार से मांग की है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।