तंज़ानिया की राष्ट्रपति सामिया सुलुहू हसन ने एक बार फिर इतिहास रच दिया। चुनाव आयोग ने शनिवार को घोषणा की कि उन्होंने 97.66% वोट हासिल कर दूसरी बार राष्ट्रपति पद जीत लिया। 3.76 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 87% (लगभग 3.2 करोड़) ने बुधवार को वोट डाला, जिनमें से 3.19 करोड़ वोट सामिया को मिले। यह जीत अफ्रीकी महाद्वीप में दुर्लभ भूस्खलन जैसी लग रही है, लेकिन विपक्षी दमन और हिंसा की आंच ने इसे विवादास्पद बना दिया। सामिया ने डोदोमा में प्रमाणपत्र ग्रहण करते हुए कहा, "यह जीत महिलाओं की ताकत का प्रतीक है। अब देश को एकजुट करने का समय है, हिंसा से बनी 60 साल की विरासत को बचाना होगा।" सुरक्षा बलों को धन्यवाद देते हुए उन्होंने शांति का वादा किया। 2021 में जॉन मागुफुली की मौत के बाद सत्ता संभालने वाली सामिया ने इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा और स्थिरता पर जोर दिया, जो ग्रामीण मतदाताओं का समर्थन दिला गया। लेकिन यह 'कोरोनेशन' जैसा चुनाव रहा। मुख्य प्रतिद्वंद्वी टुंडू लिस्सू पर राजद्रोह के आरोप लगे, जबकि ACT-Wazalendo के लुहागा म्पिना को अयोग्य घोषित कर दिया गया। विपक्ष ने इसे 'चुनावी धांधली' बताया। चुनाव से पहले कई इलाकों में हिंसा भड़की – सैकड़ों की मौत, घायल और गिरफ्तारियां। इंटरनेट ब्लैकआउट ने हताहतों की सच्चाई छिपा दी। कई जगह कर्फ्यू लगाया गया, दूतावासों ने यात्रा चेतावनी जारी की। अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक चिंतित। यूएन प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने 'मौतों और चोटों' पर गहरी चिंता जताई। यूरोपीय काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के एलेक्स वाइन्स ने 'विपक्ष पर उत्पीड़न' की निंदा की। ह्यूमन राइट्स वॉच ने मीडिया दमन और चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए। फ्रीडम हाउस ने तंज़ानिया को 'गैर-स्वतंत्र' करार दिया। क्या यह जीत स्थिरता लाएगी या अशांति बढ़ाएगी? सामिया के दूसरे कार्यकाल में लोकतंत्र की परीक्षा होगी। अफ्रीका की नजरें डार एस सलाम पर!
तंज़ानिया चुनाव: 97.66% वोटों से सामिया सुलुहू हसन की भारी जीत, लेकिन हिंसा की छाया में 'ताजपोशी'