भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) एन.वी. रमना ने एक बार फिर सत्ता के दुरुपयोग पर सीधी चोट की है। आंध्र प्रदेश के अमरावती में विटी-एपी यूनिवर्सिटी के पांचवें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने जगन मोहन रेड्डी की सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि संवैधानिक सिद्धांतों की रक्षा करने वाले न्यायिक अधिकारियों को दबाव और उत्पीड़न का शिकार बनाया गया। रमना ने खुलासा किया कि राजनीतिक मामलों से दूर रहने वाले जजों के परिवारों को भी राजनीतिक संगठनों ने निशाना बनाया। यह बयान न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को हिला देने वाला है।
परिवार को बनाया गया हथियार: रमना का दर्दभरा खुलासा पूर्व CJI रमना ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "आप सब जानते हैं कि मेरे परिवार को कैसे निशाना बनाया गया और उनके खिलाफ केस दर्ज कराए गए। यह सब सिर्फ मुझे दबाने के लिए किया गया।" उन्होंने बताया कि मुश्किल दौर में किसानों के मुद्दों का पक्ष लेने वाले लोगों को धमकियां दी गईं और दबाव डाला गया। रमना का यह बयान आंध्र प्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल मचा रहा है, जहां न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच तनाव पुराना है। 2022 में CJI रहते हुए रमना ने कई संवेदनशील मामलों में फैसले दिए थे, जो सत्ता के खिलाफ जाते थे। अब उनका यह आरोप जगन सरकार को आईने दिखाने जैसा है।
न्यायपालिका पर हमले: लोकतंत्र का संकट? रमना ने जोर देकर कहा कि "जो जजों का कोई राजनीतिक केस में हाथ नहीं था, उनके परिवारजनों को भी राजनीतिक संगठनों ने निशाना बनाया।" यह बयान आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के कई विवादास्पद फैसलों से जुड़ता नजर आता है, जहां सरकार ने न्यायिक हस्तक्षेप को 'राजनीतिक साजिश' करार दिया था। विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्व CJI का यह खुलासा न्यायपालिका की स्वायत्तता पर बढ़ते खतरे को उजागर करता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और बार काउंसिल जैसे संगठनों ने इस बयान पर प्रतिक्रिया मांगी है, जबकि विपक्षी दल TDP ने इसे 'तानाशाही का प्रमाण' बताते हुए जांच की मांग की है।
किसानों का दर्द और सत्ता का दमन रमना ने किसानों के समर्थकों पर दबाव का जिक्र करते हुए कहा कि "मुश्किल समय में जो लोग किसानों के पक्ष में खड़े थे, उन्हें धमकाया और दबाया गया।" यह आंध्र प्रदेश के तीन राज्यों के पुनर्गठन और भूमि सुधारों से जुड़े विवादों की याद दिलाता है, जहां हजारों किसान प्रभावित हुए थे। पूर्व CJI का यह बयान न केवल व्यक्तिगत पीड़ा का इजहार है, बल्कि पूरे सिस्टम पर एक चेतावनी भी। क्या यह राजनीतिक प्रतिशोध का चरम है? या न्याय की आवाज को कुचलने की साजिश? सवाल गंभीर हैं, और जवाब तलाशने का वक्त आ गया है। यह घटना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक सबक है—सत्ता कभी भी न्याय को दबा नहीं सकती। पूर्व CJI रमना की यह बहादुरी नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बनेगी। क्या जगन सरकार जवाब देगी? आने वाले दिनों में नजरें आंध्र की सियासत पर टिकी हैं।