अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की जीत को लेकर अरब के देशों के मीडिया में तीखी बहस चल रही है.
अरब के ज्यादातर मीडिया आउटलेट्स का कहना है कि ट्रंप के आने से मध्यपूर्व में शांति आएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है.
अल जज़ीरा ने ट्रंप की जीत पर फ़लस्तीन के जिन लोगों से बात की उन्हें इस बात की पूरी आशंका है कि ट्रंप के आने से इसराइल की नृशंसता और बढ़ेगी क्योंकि प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से उनकी काफ़ी क़रीबी है. अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने नेतन्याहू से दोस्ती दिखाई थी.
'तेहरान टाइम्स' लिखता है कि ट्रंप ने ग़ज़ा संघर्ष ख़त्म कराने का वादा किया था. लेकिन अब ये साफ हो गया है कि ऐसा वो इसलिए कह रहे थे कि कमला हैरिस के वोट रिपब्लिकन पार्टी को मिल सके.
अख़बार ने लिखा है, ''ट्रंप और हैरिस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. दोनों को इसराइल की ओर से मारे जा रहे फल़स्तीनियों और लेबनानी लोगों की जान की कोई परवाह नहीं है. हैरिस की हार ये दिखाती है कि अमेरिकी लोग उनके देश की ओर से इसराइल को दी जा रही मदद को लेकर कितने हताश हैं.''
अरब न्यूज़' लिखता है कि मध्य-पूर्व में ट्रंप की नीतियों से सबसे ज्यादा चिंतित होने की ज़रूरत किसी को है तो वो है ईरान.
अख़बार लिखता है कि अपने चुनावी अभियान के दौरान ट्रंप ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले की संभावनाओं पर बात की थी. उनका कहना था कि अमेरिका को पहले उन पर हमला करना चाहिए था और फिर बात करनी चाहिए थी.
अख़बार ने लिखा है कि ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में ईरान और उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ ज़्यादा कड़ा रुख़ अख़्तियार कर सकते हैं.