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Monday, 16 June 2025

विदेशों में फंसे भारतीय विद्यार्थी: रेस्क्यू की चुनौतियां और भारत में सुविधाओं की कमी

विदेशों में फंसे भारतीय विद्यार्थी: रेस्क्यू की चुनौतियां और भारत में सुविधाओं की कमी
पिछले कुछ वर्षों में, वैश्विक मंच पर भारतीय विद्यार्थियों की सुरक्षा और उनके रेस्क्यू ऑपरेशनों ने भारत सरकार और समाज के सामने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। युक्रेन, कनाडा और ईरान जैसे देशों में पढ़ाई के लिए गए भारतीय छात्रों को युद्ध, भू-राजनीतिक तनाव और अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण बार-बार संकट का सामना करना पड़ा है। इन परिस्थितियों ने न केवल भारत की विदेश नीति और आपातकालीन निकासी तंत्र की ताकत को परखा है, बल्कि यह भी उजागर किया है कि भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी के कारण लाखों छात्र विदेशों में पढ़ाई के लिए मजबूर हैं।

युक्रेन: युद्ध के बीच रेस्क्यू की जंग

2022 में रूस-युक्रेन युद्ध के दौरान हजारों भारतीय छात्र युक्रेन में फंस गए थे। भारत सरकार ने 'ऑपरेशन गंगा' के तहत लगभग 15,000 से अधिक नागरिकों, मुख्य रूप से छात्रों, को सुरक्षित निकाला। विशेष उड़ानों और पड़ोसी देशों जैसे पोलैंड, रोमानिया और हंगेरी के साथ समन्वय के जरिए यह अभियान संचालित किया गया। हालांकि, कई छात्रों ने दूतावासों की ओर से अपर्याप्त संचार और देरी की शिकायत की। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में बसों पर "Indian Students On Board" के बैनर दिखे, जो भारत की एकजुटता और शक्ति को दर्शाते थे, लेकिन यह भी सवाल उठा कि क्या समय पर कार्रवाई से इस संकट को टाला जा सकता था।

ईरान: तनाव और निकासी की चुनौती

2025 में ईरान-इजरायल युद्ध ने एक बार फिर भारतीय छात्रों को संकट में डाल दिया। तेहरान और अन्य शहरों में पढ़ रहे लगभग 10,000 भारतीय छात्रों की सुरक्षा के लिए भारत सरकार ने विशेष बसों और जमीनी रास्तों (अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान, और अफगानिस्तान) के जरिए निकासी शुरू की। भारतीय दूतावास ने एडवाइजरी जारी कर छात्रों से संपर्क में रहने और सावधानी बरतने को कहा। विडंबना यह है कि विमानन मार्ग बंद होने से निकासी प्रक्रिया जटिल हो गई। कुछ विपक्षी नेताओं ने दावा किया कि 1,500 से अधिक छात्र अनिश्चितता में फंसे हैं, और सरकार को तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है।

कनाडा: भू-राजनीतिक तनाव का असर

कनाडा में हाल के वर्षों में भारतीय छात्रों की स्थिति भी चिंताजनक रही है। 2024 में कनाडा की जासूसी एजेंसी ने भारत को "खतरा पैदा करने वाला देश" करार दिया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा। इस बीच, कनाडा में पढ़ रहे लगभग 2 लाख भारतीय छात्रों को बढ़ती फीस और सामाजिक असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। कई छात्रों ने वहां की महंगी शिक्षा और अनिश्चित भविष्य के कारण भारत लौटने की इच्छा जताई, लेकिन भारत में समकक्ष शिक्षा सुविधाओं की कमी ने उन्हें मजबूर कर रखा है।

भारत में शिक्षा सुविधाओं की कमी: मजबूरी का मूल कारण

इन सभी संकटों का एक प्रमुख कारण भारत में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और विशेष रूप से मेडिकल व तकनीकी शिक्षा के लिए सीमित अवसर हैं। युक्रेन और ईरान जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई सस्ती और सुलभ होने के कारण भारतीय छात्र वहां आकर्षित होते हैं। उदाहरण के लिए, युक्रेन में पढ़ाई की लागत भारत की तुलना में कम थी, लेकिन वहां की डिग्री भारत में मान्यता प्राप्त नहीं होती। इसी तरह, कनाडा जैसे देशों में बेहतर अवसरों की तलाश में जाने वाले छात्रों को भारी-भरकम फीस और भू-राजनीतिक तनाव का सामना करना पड़ता है। भारत में मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटों की कमी, कठिन प्रवेश परीक्षाएं, और निजी संस्थानों की ऊंची फीस ने लाखों छात्रों को विदेशों की ओर धकेल दिया है।

निष्कर्ष: एक सबक और समाधान की जरूरत

विदेशों में फंसे भारतीय छात्रों की बार-बार निकासी की आवश्यकता ने भारत के सामने दोहरी चुनौती पेश की है: पहला, आपातकालीन रेस्क्यू तंत्र को और मजबूत करना, और दूसरा, देश में ही ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करना जो छात्रों को विदेशों में पढ़ाई के लिए मजबूर न करे। ऑपरेशन गंगा जैसे प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन यह भी जरूरी है कि सरकार दूतावासों के संचार तंत्र को और प्रभावी बनाए। साथ ही, भारत में मेडिकल और तकनीकी शिक्षा के अवसरों को बढ़ाने, निजी संस्थानों की फीस को नियंत्रित करने, और विदेशी डिग्रियों की मान्यता पर स्पष्ट नीति बनाने की आवश्यकता है। 

जब तक भारत अपनी शिक्षा प्रणाली को सशक्त नहीं करता, भारतीय छात्रों का विदेशों में संकट का सामना करना और रेस्क्यू ऑपरेशनों की जरूरत बनी रहेगी। यह समय है कि भारत न केवल अपने नागरिकों को सुरक्षित लाए, बल्कि उन्हें घर में ही बेहतर भविष्य के अवसर भी प्रदान करे।