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Tuesday, 1 July 2025

ईरान के 1,300 से अधिक सुन्नी विद्वानों ने दी अमेरिका और ज़ायोनी शासन पर जीत की बधाई, इस्लामी एकता का किया आह्वान

ईरान के 1,300 से अधिक सुन्नी विद्वानों ने दी अमेरिका और ज़ायोनी शासन पर जीत की बधाई, इस्लामी एकता का किया आह्वान
ईरान के 1,300 से अधिक सुन्नी विद्वानों, बुद्धिजीवियों और विचारकों ने एक संयुक्त बयान जारी कर इस्लामी गणराज्य ईरान की अमेरिका और ज़ायोनी शासन पर हाल की जीत को बधाई दी है। यह बयान इस्लामी देशों के नेताओं, विद्वानों और युवाओं को संबोधित करते हुए क्षेत्रीय घटनाक्रमों और ज़ायोनी शासन के खिलाफ ईरान की सफलता को इस्लाम की कुफ्र पर जीत का प्रतीक बताता है। पार्स टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, बयान का मूल विषय कुरान की आयत पर आधारित है: *“और विजय तो केवल अल्लाह की ओर से है जो प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।”* ### बयान का सार सुन्नी विद्वानों ने अपने बयान में ज़ायोनी शासन को इस्लामी जगत में कैंसर की संज्ञा दी, जिसकी नींव हिंसा, ब्रिटिश और अमेरिकी नीतियों पर आधारित है। उन्होंने इस शासन पर फिलिस्तीन में मासूम बच्चों और महिलाओं के नरसंहार का आरोप लगाया। बयान में 7 अक्टूबर के *अल-अक्सा तूफान* ऑपरेशन का उल्लेख किया गया, जिसके माध्यम से गाजा के युवाओं ने ज़ायोनी शासन की सैन्य, सुरक्षा और आर्थिक ताकत को चुनौती दी। इसके जवाब में, हमास, हिजबुल्लाह, यमन के हूती और अन्य इस्लामी समूहों ने कुरान की आयत *“और तुम्हें क्या हुआ है कि तुम अल्लाह के मार्ग में और कमजोर पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के लिए नहीं लड़ते?”* के आह्वान पर फिलिस्तीन के समर्थन में युद्ध लड़ा। इन समूहों के नेताओं, जैसे शहीद इस्माइल हनिया, याह्या सिनवार, सैयद हसन नसरुल्लाह और सैयद हाशिम सफीउद्दीन की शहादत ने ज़ायोनी शासन की क्रूरता को और उजागर किया। 

ज़ायोनी शासन और अमेरिका पर निशाना विद्वानों ने ज़ायोनी शासन को एक “खूनी और निर्लज्ज” सत्ता बताया, जो अमेरिका और पश्चिमी देशों के समर्थन से इस्लामी देशों पर हमले कर रहा है। उन्होंने दावा किया कि इस शासन ने फिलिस्तीन, लेबनान, यमन और अब ईरान पर हमले किए, लेकिन ईरानी इस्लामी गणराज्य ने इसका डटकर मुकाबला किया और उसे भारी हार का सामना करना पड़ा। बयान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान की निंदा की गई, जिसमें उन्होंने ईरान के सर्वोच्च नेता को “खत्म” करने की धमकी दी थी। इसे इस्लामी सभ्यता के खिलाफ पश्चिमी सभ्यता के युद्ध का हिस्सा बताया गया। ### सुन्नी विद्वानों का आह्वान ईरान के सुन्नी विद्वानों ने इस्लामी देशों के नेताओं, विचारकों और युवाओं से निम्नलिखित मांगें कीं: 1. **ज़ायोनी शासन के खिलाफ स्पष्ट रुख**: इस्लामी देशों को इस शासन के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए। 2. **अमेरिकी सैन्य अड्डों और दूतावासों का विरोध**: अमेरिका की युद्ध में भूमिका के खिलाफ वैश्विक स्तर पर विरोध करना। 3. **इस्लामी मोर्चे का समर्थन**: इस्लामी प्रतिरोध समूहों को व्यावहारिक सहायता प्रदान करना। 4. **काफिरों की प्रगति रोकना**: इस्लामी देशों को कुरान और पैगंबर की सुन्नत के अनुसार काफिरों का विरोध करने का आह्वान। 5. **न्याय और एकता**: अत्याचारियों की निंदा और एकजुट इच्छाशक्ति से इस्लामी उम्मा को सम्मान और गौरव दिलाना। ### इस्लामी एकता पर जोर बयान में इस्लामी एकता को मजबूत करने पर बल दिया गया। विद्वानों ने कहा कि यह संघर्ष “अहज़ाब” के युद्ध जैसा है, जहां पूरा इस्लाम कुफ्र के खिलाफ खड़ा है। उन्होंने कुरान की आयत *“और तुम हिम्मत न हारो और न दुखी हो और तुम ही प्रभुत्वशाली हो, यदि तुम मोमिन व विश्वासी हो”* का हवाला देते हुए इस्लामी देशों से सत्य के मार्ग पर दृढ़ रहने का आग्रह किया। ### निष्कर्ष ईरान के सुन्नी विद्वानों का यह बयान न केवल ज़ायोनी शासन और अमेरिका के खिलाफ एक कड़ा संदेश है, बल्कि इस्लामी दुनिया को एकजुट होने और फिलिस्तीन के मजलूम लोगों के समर्थन में खड़े होने का आह्वान भी है। यह बयान इस्लामी गणराज्य ईरान की हाल की जीत को इस्लाम की ताकत और एकता का प्रतीक मानता है, जो क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर इस्लामी उम्मा के गौरव को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक कदम है