ईरान के 1,300 से अधिक सुन्नी विद्वानों, बुद्धिजीवियों और विचारकों ने इस्लामी देशों के नेताओं और युवाओं को संबोधित करते हुए एक बयान जारी किया और अमेरिका और ज़ायोनी शासन पर ईरानी की जीत को बधाई दी।
हाल के क्षेत्रीय घटनाक्रम और ज़ायोनी शासन के प्रत्यक्ष ख़तरों का मुकाबला करने में ईरानी गणराज्य की सफलता के मद्देनजर ईरान के 1,300 से अधिक सुन्नी विचारकों और धर्मगुरुओं ने रविवार को एक संयुक्त बयान जारी किया। पार्स टुडे की रिपोर्ट के अनुसार इस बयान का मूल विषय इस प्रकार है: और विजय तो केवल अल्लाह की ओर से है जो प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है"
इस्लामी देशों के नेताओं, इस्लामी विश्व के सम्मानित विद्वानों एवं विचारकों और प्रिय मुस्लिम युवाओं के नाम:
हम ईरानी इस्लामी गणराज्य की अमेरिका और ज़ायोनी शासन पर विजय को बधाई देते हैं जो इस्लाम की कुफ्र पर जीत का प्रतीक है। हम निवेदन करते हैं कि वह नीच ज़ायोनी शासन, जिसकी अवैध नींव हिंसा और ब्रिटिश गंदी नीतियों तथा अमेरिकी दुष्ट नीतियों पर रखी गई थी और जो आज भी जारी है, इस्लामी देशों के शरीर पर अर्थात इस्लामी जगत में एक कैंसर की तरह फैल चुका है।
यह खूनी शासन, जिसने अपने काफ़िर सहयोगियों की मदद से पवित्र बैतुल मुक़द्दस और मुसलमानों के पहले किबला पर कब्जा किया, ऐसा कोई दिन नहीं गुज़रता था जब उसने फिलिस्तीन के निर्दोष बच्चों और महिलाओं का नरसंहार न किया हो। ये निर्लज्ज अत्याचार तब तक जारी रहे, जब तक कि गाजा के बहादुर युवाओं का सब्र टूट नहीं गया और उन्होंने 7 अक्टूबर को एक अद्वितीय महाकाव्य रचा। अल-अक्सा तूफ़ान ऑपरेशन के माध्यम से उन्होंने इस शासन और उसके समर्थकों की झूठी ताकत को सुरक्षा, सैन्य और यहां तक कि आर्थिक स्तर पर गंभीर चुनौती दी।
इस घटना के बाद, इस्लामी देशों के कई मुजाहिदों ने पवित्र कुरान की इस आयत के अनुसार: "और तुम्हें क्या हुआ है कि तुम अल्लाह के मार्ग में और कमजोर पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के लिए नहीं लड़ते?"
निर्दोष फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में खड़े हो गए और दिल से युद्ध के इस मार्ग को अपनाया।
इस कैंसर जैसी सत्ता ने आक्रामक अमेरिका और कुछ स्वार्थी देशों की मदद से फिलस्तीन के इस्लामी समर्थकों का मुकाबला किया। उन्होंने कई इस्लामी देशों पर बमबारी की, बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों को शहीद किया और साथ ही शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह और शहीद सैयद हाशिम सफीउद्दीन जैसे मुजाहिदीन को भी शहादत दिलाई। फिलस्तीन के शहीद मुजाहिदीन जैसे शहीद इस्माइल हनिया और शहीद यह्यिया अल-सिनवार, जिनका एकमात्र 'अपराध' मुसलमानों के पहले किबला मस्जिद अल-अक्सा और मजलूम बच्चों व महिलाओं की रक्षा करना था, के बलिदान ने इस शासन की क्रूर प्रवृत्ति को और अधिक उजागर कर दिया।
इस निर्दयी और खूनी शासन को लगता था कि इस्लामी दुनिया में उसका कोई विरोधी नहीं है। वह निर्दोष इस्लामी युवाओं और बेसहारा लोगों पर हमलों के झूठे घमंड में डूबा हुआ था। अमेरिकी अपराधियों के समर्थन से प्रेरित होकर, उसने अचानक फिलिस्तीन के मजलूम लोगों के सबसे बड़े समर्थक ईरानी इस्लामी गणराज्य पर हमला करने का फैसला किया।
उनका भ्रमपूर्ण विश्लेषण था कि वे ईरानी सरकार को उखाड़ फेंक सकते हैं, लेकिन वे एक बड़े संकट में फंस गए और भारी हार का सामना करना पड़ा। यह तब हुआ जब वे हमास जैसे प्रतिरोध आंदोलन को खत्म नहीं कर पाए थे, न ही यमन के प्रतिरोध के सामने आत्मसमर्पण करवा पाए थे।
आज, यह जाली व फ़र्ज़ी ज़ायोनी शासन अमेरिका और उसके पश्चिमी समर्थकों के साथ मिलकर एक-एक करके सभी इस्लामी देशों के खिलाफ युद्ध छेड़ने का फैसला कर चुका है। अगर कल उन्होंने फिलिस्तीन, लेबनान, यमन और अन्य इस्लामी क्षेत्रों पर हमला किया था, तो आज वे ईरान के पीछे पड़ गए हैं। बेशर्म ट्रम्प ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों को ताक पर रखते हुए इस्लामी प्रतिरोध मोर्चे के महान नेता यानी ईरान के सर्वोच्च नेता को "खत्म" करने की बात कही है।
सावधान रहें: कल की बारी अन्य इस्लामी देशों और उनके नेताओं की होगी, क्योंकि ये युद्ध- काफिरों ने एक सभ्यतागत संघर्ष - पश्चिमी सभ्यता बनाम इस्लामी सभ्यता का युद्ध - छेड़ दिया है। आज का संघर्ष "अहज़ाब" के युद्ध जैसा है, जहां "पूरा इस्लाम पूरे कुफ्र के खिलाफ खड़ा हो गया है"। निश्चित रूप से, उनकी यह दुष्टता तब तक जारी रहेगी जब तक कि कुफ्र का पूरी तरह सफाया नहीं हो जाता।
ईरान के सुन्नी विद्वानों और बुद्धिजीवियों की घोषणा:
आज का दिन वह दिन है जब हम, ईरान के सुन्नी विचारक और बुद्धिजीवी, कुरान और पैगंबर की सुन्नत से प्रेरणा लेते हुए स्पष्ट घोषणा करते हैं कि इन युद्धरत काफिरों का विरोध करना ईश्वरीय आदेश है। अब समय आ गया है कि इस्लामी देशों के नेताओं, विचारकों और योद्धाओं को 'काफिरों के प्रति कठोर और आपस में दयालु' बनकर, ईश्वरीय प्रतिशोध का हाथ बनना चाहिए।"
हमारी मांग:
ज़ायोनी शासन के खिलाफ़ स्पष्ट रुख अपनाएं
युद्ध में अमेरिकी उपस्थिति के चलते दुनिया भर में अमेरिकी सैन्य अड्डों, दूतावासों और कंपनियों का विरोध करें,इस्लामी मोर्चे का व्यावहारिक समर्थन करें,इन युद्धरत काफिरों की आगे की प्रगति को रोकें,अत्याचारियों की निंदा या हस्तक्षेप से न डरें,हमारा विश्वास: ईश्वरीय सहायता और एकजुट इच्छाशक्ति से यह दुश्मन पराजित होगा। इस्लामी उम्मा को फिर से सम्मान और गौरव प्राप्त होगा और हम वैश्विक समीकरणों को निर्धारित करने में सक्षम होंगे।
आज का आह्वान: आज चुनाव, दृढ़ संकल्प और कार्य का दिन है। आज इस पवित्र आयत पर अमल का दिन है: और तुम हिम्मत न हारो और न दुखी हो और तुम ही प्रभुत्वशाली हो, यदि तुम मोमिन व विश्वासी हो।' जान लो कि सत्य के मार्ग पर दृढ़ता से खड़े रहने पर विजय अवश्य मिलेगी, जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया: और यदि वे सीधे मार्ग पर दृढ़ रहें तो हम उन्हें प्रचुर जल से सिंचित करेंगे।
आप सभी पर अल्लाह की शांति और दया हो। MM