पश्चिम बंगाल: भारत में बांग्ला भाषी लोगों को अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए बताकर हिरासत में लेने और सीमा पार धकेलने की घटनाएं एक गंभीर विवाद को जन्म दे रही हैं। हाल ही में, चार भारतीय नागरिकों को, जो पश्चिम बंगाल के वैध निवासी थे, केवल बांग्ला भाषा बोलने के आधार पर अवैध बांग्लादेशी मानकर हिरासत में लिया गया और बांग्लादेश सीमा में धकेल दिया गया। पश्चिम बंगाल पुलिस की जांच में पुष्टि हुई कि ये चारों व्यक्ति भारतीय नागरिक थे, जिसके बाद इस कार्रवाई को लेकर तीखा विरोध शुरू हो गया है। यह घटना कोई पहला मामला नहीं है। दिल्ली, महाराष्ट्र, और अन्य राज्यों में भी बांग्ला भाषी लोगों को अवैध बांग्लादेशी बताकर हिरासत में लेने और सीमा पर धकेलने की खबरें सामने आई हैं।
मानवाधिकार संगठनों और स्थानीय नेताओं ने इस तरह की कार्रवाइयों को गैरकानूनी और अमानवीय करार दिया है। एक ऐसी ही घटना में, दिल्ली पुलिस ने छह भारतीय मुसलमानों को, जो पश्चिम बंगाल के निवासी थे, केवल बांग्ला में बात करने के आधार पर अवैध बांग्लादेशी मानकर हिरासत में लिया था। बाद में उनके वैध दस्तावेजों की जांच के बाद उन्हें रिहा करना पड़ा। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि बांग्ला भाषी लोगों को बांग्लादेशी बताकर उत्पीड़न करना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने इसे एक खतरनाक प्रवृत्ति बताते हुए कहा कि भाषा और संस्कृति के आधार पर किसी की नागरिकता पर सवाल उठाना न केवल गलत है, बल्कि यह सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुंचाता है। ममता ने केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसी कार्रवाइयां अक्सर उन बस्तियों को निशाना बनाती हैं, जिन्हें अवैध घोषित कर ध्वस्त करने की योजना होती है। मानवाधिकार संगठनों ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है। बांग्लादेश की सीमा सुरक्षा बल (बीजीबी) ने हाल ही में कई ऐसे लोगों को वापस भारत भेजा, जिन्हें भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने अवैध रूप से बांग्लादेश में धकेल दिया था। इनमें से कई लोग भारतीय नागरिक थे, जिनके पास वैध दस्तावेज थे। बांग्लादेश के सीमा सुरक्षा बल के प्रमुख मेजर जनरल मोहम्मद अशरफुज्जमां सिद्दीकी ने भारत की इस नीति को "अमानवीय" और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया।
यह विवाद तब और गहरा गया, जब गुजरात पुलिस ने 6,500 से अधिक लोगों को "अवैध बांग्लादेशी" बताकर हिरासत में लिया, लेकिन बाद में केवल 450 लोग ही अवैध पाए गए। बाकी लोग भारतीय नागरिक थे, जिनमें से अधिकांश पश्चिम बंगाल के बांग्ला भाषी थे। इस तरह की कार्रवाइयों ने सवाल उठाया है कि क्या केवल भाषा या क्षेत्रीय पहचान के आधार पर किसी को अवैध घोषित करना उचित है?
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत-बांग्लादेश सीमा, जो 4,096 किलोमीटर लंबी है, की जटिल भौगोलिक स्थिति और दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक समानताएं इस समस्या को और जटिल बनाती हैं। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच भाषाई और सांस्कृतिक समानताएं इतनी अधिक हैं कि कई बार स्थानीय लोगों को गलत तरीके से निशाना बनाया जाता है। इसके अलावा, कुछ राजनीतिक दल इस मुद्दे को वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर सामाजिक तनाव को बढ़ावा देने का आरोप भी लग रहा है।
यह घटनाएं न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन दर्शाती हैं, बल्कि यह भी सवाल उठाती हैं कि क्या भारत में नागरिकता का निर्धारण भाषा, धर्म या क्षेत्र के आधार पर किया जा सकता है। इस तरह की कार्रवाइयों ने सामाजिक एकता को खतरे में डाला है और केंद्र व राज्य सरकारों से इस मुद्दे पर संवेदनशीलता के साथ काम करने की मांग की जा रही है।