क़तरी वेबसाइट "अल-अरबी अल-जदीद" ने यह कहते हुए कि ईरान हमेशा अरब राष्ट्रों का मित्र और फ़िलिस्तीन का सच्चा समर्थक रहा है, ज़ोर दिया है कि अरबों को ईरान से, जो अकेले ही साम्राज्यवाद के खिलाफ़ खड़ा है, शक्ति और स्वतंत्रता का सबक लेना चाहिए और समझना चाहिए कि तेहरान के साथ एकता सभी अरब देशों के हित में है।
पार्स टुडे ने तसनीम समाचार एजेंसी के हवाले से बताया है कि ईरान और ज़ायोनी शासन के बीच बारह दिन की जंग और उसके परिणामों को लेकर ज़ायोनी हल्कों में हो रहे विश्लेषणों के सिलसिले में, क़तरी वेबसाइट "अल-अरबी अल-जदीद" ने इस विषय को एक नए दृष्टिकोण से उठाया है और उन अरब शासनों की नीतियों की आलोचना की है जो क्षेत्र में अमेरिका और इस्राईल के अपराधों के सामने पूरी तरह समर्पित हो चुके हैं।
इस वेबसाइट ने ईरान की गरिमामयी और शक्तिशाली स्थिति की प्रशंसा की है, जिसका लेख इस प्रकार है:
ईरान अकेले ही क्षेत्र में ज़ायोनी साम्राज्यवाद के खिलाफ़ खड़ा है।
आज ईरान ने स्पष्ट रूप से खुद को क्षेत्रीय देशों का एक वास्तविक सहयोगी घोषित किया है जो ज़ायोनी अत्याचार और साम्राज्यवाद के खिलाफ़ खड़ा है। ऐसे समय में जब अरब देशों ने कब्जाधारियों के अपराधों पर अपनी आंखें मूंद रखी हैं, ईरान विशेष रूप से ग़ाज़ा और फिलिस्तीन का व्यावहारिक रूप से समर्थन कर रहा है। लगभग साढ़े चार दशकों से, कुछ अरब शासनों की सरकारी प्रचार मशीनरी लगातार इस्लामी क्रांति को ग़लत रूप में दिखाने और ईरान को अरब राष्ट्रों का साझा दुश्मन बताने की कोशिश करती रही हैं। कुछ विशिष्ट अरब शासन लगातार ईरान, उसके शासन, संस्कृति और जनता के खिलाफ भड़काऊ भूमिका निभाते रहे हैं। कभी यह डर ईरानी क्रांति के निर्यात को लेकर था, कभी शिया मत के फैलाव को लेकर और कभी क्षेत्र में फ़ारसियों के प्रभाव के विस्तार के बहाने से।
इस्लामी गणराज्य ईरान ने फ़िलिस्तीन के समर्थन के लिए सबसे बड़ा कार्य किया है।
1979 में इस्लामी क्रांति की सफ़लता के बाद फ़िलिस्तीन का समर्थन इस क्रांति के बुनियादी सिद्धांतों में से एक घोषित किया गया और तेहरान में फिलिस्तीन का झंडा फ़हराया गया लेकिन इस महान कार्य के मुक़ाबले में, जिसे ईरान ने फिलिस्तीन के समर्थन में अंजाम दिया, अरब देशों ने क्या किया?
उन्होंने ईरान के खिलाफ़ सबसे लंबा और सबसे हिंसक युद्ध छेड़ दिया गया जिसे इराक़ में तानाशाह सद्दाम के नेतृत्व में और अमेरिका के पूर्ण समर्थन से चलाया गया, वह अमेरिका जो ईरानी क्रांति को कुचलना चाहता था, दुर्भाग्य से, अरब देशों ने, जो इस्लामी क्रांति के अपने देशों के मजलूम लोगों तक पहुँचने से डरते थे, इस असमान युद्ध के लिए वित्तीय सहायता देना शुरू कर दिया।
कुछ अरब ईरान को उस समय की सीरियाई सरकार, बशार असद की अध्यक्षता वाली सरकार के साथ खड़े होने के लिए दोषी ठहराते हैं, लेकिन वे यह भूल गए हैं कि कुछ अरब शासनों ने सीरिया संकट के दौरान, जो लगभग 13 साल चला और जिसमें सीरिया बर्बाद हो गया, गृहयुद्ध को भड़काया और सशस्त्र समूहों का समर्थन किया।
तेहरान के साथ एकता सभी अरबों के हित में है
आज यह सभी अरब देशों और राष्ट्रों के हित में है कि वे इस्लामी गणराज्य ईरान को एक सहयोगी के रूप में अपने साथ रखें, न कि उसे दुश्मन बना दें। जो लोग क्षेत्र में ईरान के प्रभाव को आधार बनाकर उससे दुश्मनी को जायज़ ठहराते हैं, उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि यह प्रभाव स्वयं उन समूहों और समाजों के अनुरोध पर है, जो क्षेत्रीय देशों के सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा हैं और यह प्रभाव ज़ायोनी परियोजना के खिलाफ संघर्ष के दायरे में आता है।
ईरान ने कभी किसी अरब देश पर आक्रमण नहीं किया और न ही किसी अरब देश की ज़मीन पर क़ब्ज़ा किया है; लेकिन इस्राईल ने यह काम हमेशा किया है और आज भी कर रहा है। यहाँ तक कि ईरान के वे तीन द्वीप, जिन पर संयुक्त अरब अमीरात संप्रभुता का दावा करता है, 1971 में यानी इस्लामी क्रांति की सफ़लता से आठ साल पहले और उस समय ईरान के पहलवी शासन के दौरान, जो कुछ अरब सरकारों का मित्र और अमेरिका तथा इस्राईल का मजबूत सहयोगी था, ईरान के अधीन थे। MM