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Saturday, 5 July 2025

आशुरा और इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत: बलिदान और इंसाफ की अमर गाथा

आशुरा और इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत: बलिदान और इंसाफ की अमर गाथा
       आशुरा का महत्व और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

आशुरा, इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम का दसवां दिन, दुनिया भर के मुसलमानों, विशेषकर शिया समुदाय के लिए गहन महत्व रखता है। यह दिन इमाम हुसैन (अ.स.), पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के नवासे, की शहादत की याद में मनाया जाता है। 680 ईस्वी में कर्बला (वर्तमान इराक) के मैदान में इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके 72 वफादार साथियों ने यज़ीद की सेना के खिलाफ सत्य, न्याय और मानवता के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। यह घटना न केवल एक ऐतिहासिक त्रासदी है, बल्कि एक ऐसी प्रेरणा भी है जो हर युग में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का साहस देती है। 

कर्बला की घटना: एक अविस्मरणीय बलिदान

 इमाम हुसैन (अ.स.) यज़ीद की तानाशाही और अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ खड़े हुए। यज़ीद ने इस्लाम के मूल सिद्धांतों को भ्रष्ट करने की कोशिश की, जिसे इमाम हुसैन ने स्वीकार नहीं किया। कर्बला में, इमाम हुसैन, उनके परिवार और साथियों ने भोजन और पानी की कमी के बावजूद, यज़ीद की विशाल सेना का डटकर मुकाबला किया। 10 मुहर्रम को, इमाम हुसैन और उनके साथियों ने शहादत प्राप्त की, लेकिन उनकी कुर्बानी ने सत्य और न्याय की मशाल को हमेशा के लिए प्रज्वलित कर दिया। 

आशुरा का संदेश: आज के संदर्भ में

आशुरा केवल एक धार्मिक घटना नहीं है; यह एक सार्वभौमिक संदेश है जो अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देता है। इमाम हुसैन (अ.स.) का बलिदान हमें सिखाता है कि संख्याबल या सत्ता से नहीं, बल्कि साहस, सत्य और नैतिकता से लड़ाई जीती जाती है। आज के दौर में, जब दुनिया विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अन्यायों से जूझ रही है, इमाम हुसैन का संदेश प्रासंगिक बना हुआ है। यह हमें एकजुटता, करुणा और मानवता के लिए काम करने की प्रेरणा देता है। 

आशुरा की परंपराएं

दुनिया भर में मुसलमान आशुरा के दिन इमाम हुसैन (अ.स.) को याद करते हैं। शिया समुदाय मातम, मजलिस (धार्मिक सभाएं) और जुलूस निकालकर उनकी शहादत को श्रद्धांजलि देता है। ये जुलूस न केवल शोक का प्रतीक हैं, बल्कि अन्याय के खिलाफ एकजुटता का संदेश भी देते हैं। सुन्नी समुदाय में भी आशुरा को रोज़ा रखकर और दुआओं के साथ मनाया जाता है, क्योंकि यह दिन हज़रत मूसा (अ.स.) की फराओ से मुक्ति की भी याद दिलाता है। **निष्कर्ष** इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत आशुरा के दिन हमें यह सिखाती है कि सत्य और इंसाफ की राह में बलिदान देने से कभी नहीं डरना चाहिए। उनकी गाथा हर उस व्यक्ति को प्रेरित करती है जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना चाहता है। आशुरा हमें याद दिलाता है कि इंसानियत और नैतिकता की रक्षा ही सबसे बड़ा धर्म है। इस दिन, आइए हम इमाम हुसैन (अ.स.) के बलिदान को याद करें और उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लें।

 "हर युग में एक हुसैन होता है, और हर युग में एक यज़ीद; हमें बस यह चुनना है कि हम किसके साथ खड़े हैं।"