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Thursday, 25 September 2025

दिल्ली दंगा मामला: पूर्व आप पार्षद ताहिर हुसैन की जमानत याचिका दिल्ली हाईकोर्ट ने ठुकराई, पांच साल से जेल में बंद

दिल्ली दंगा मामला: पूर्व आप पार्षद ताहिर हुसैन की जमानत याचिका दिल्ली हाईकोर्ट ने ठुकराई, पांच साल से जेल में बंद
नई दिल्ली, 25 सितंबर 2025

 दिल्ली हाईकोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्व दिल्ली दंगों के दौरान इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या के मामले में पूर्व आम आदमी पार्टी (आप) पार्षद ताहिर हुसैन की नियमित जमानत याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस नीना बनसल कृष्णा ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान याचिका को खारिज करते हुए कहा, "याचिका खारिज की जाती है।" हुसैन, जो मार्च 2020 से जेल में बंद हैं, ने मई में हाईकोर्ट का रुख किया था, जब ट्रायल कोर्ट ने 12 मार्च को उनकी जमानत याचिका ठुकरा दी थी। पुलिस ने इसे "युवा खुफिया अधिकारी की क्रूर हत्या का चौंकाने वाला मामला" बताते हुए जमानत का विरोध किया। 

 घटना का पृष्ठभूमि: दंगों में अंकित शर्मा की बेरहमी से हत्या फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्व दिल्ली में सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों के दौरान भड़की हिंसा में कम से कम 53 लोग मारे गए थे। इस दौरान 26 वर्षीय आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की कथित तौर पर भीड़ ने पकड़कर 51 चाकू के वार किए और उनके शव को नाले में फेंक दिया। शर्मा के पिता सतीश शर्मा की शिकायत पर दयालपुर थाने में एफआईआर 65/2020 दर्ज की गई, जिसमें हुसैन समेत छह अन्य पर हत्या, दंगा भड़काने और आपराधिक साजिश के आरोप लगे। अभियोजन पक्ष के अनुसार, हुसैन ने अपनी इमारत की छत से पत्थरबाजी की और भीड़ को उकसाया, जबकि शर्मा हिंसा शांत करने की कोशिश कर रहे थे। ताहिर हुसैन, जो 2015 में आप से पार्षद चुने गए थे, को दंगों के बाद पार्टी ने निलंबित कर दिया। वे अब ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) से जुड़े हैं और पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अंतरिम जमानत की कोशिश कर चुके हैं। 

 जमानत याचिका का सफर: ट्रायल कोर्ट से हाईकोर्ट तक हुसैन की ओर से दिसंबर 2024 में पहली जमानत याचिका दायर की गई थी, लेकिन फरवरी 2025 में इसे वापस ले लिया गया ताकि ट्रायल कोर्ट में दोबारा आवेदन किया जा सके। 12 मार्च को सत्र न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद मई में हाईकोर्ट में अपील की गई। हुसैन के वकील ने तर्क दिया कि वे पांच साल से जेल में हैं, ट्रायल में देरी हो रही है और वे 12 दंगा मामलों में से नौ में जमानत पर हैं, जबकि एक एफआईआर रद्द हो चुकी है। उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट के "सर्वोत्तम प्रयासों" के बावजूद मुकदमे का अंत जल्दी नजर नहीं आ रहा। हालांकि, पुलिस ने इसका विरोध किया। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हुसैन की रिहाई से गवाहों को धमकी मिल सकती है और सबूतों के साथ छेड़छाड़ का खतरा है। अदालत ने विस्तृत आदेश अभी जारी नहीं किया है, लेकिन प्रारंभिक सुनवाई में हत्या के साक्ष्यों को मजबूत बताते हुए जमानत से इनकार किया। 

कानूनी प्रक्रिया पर सवाल: लंबी हिरासत और ट्रायल में देरी यह मामला दिल्ली दंगों से जुड़े 12 मामलों में से एक है, जहां हुसैन पर यूएपीए, हत्या और साजिश के आरोप हैं। जनवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें नामांकन दाखिल करने के लिए पैरोल दी थी, लेकिन अंतरिम जमानत से इनकार कर दिया। हुसैन के वकील ने केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे मामलों का हवाला दिया, जहां लंबी हिरासत पर जमानत मिली, लेकिन अदालत ने इसे लागू न ठहराया। विपक्षी दलों ने इसे "राजनीतिक प्रतिशोध" बताया, जबकि भाजपा ने हुसैन पर "दंगों के मुख्य साजिशकर्ता" होने का आरोप लगाया। विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला दंगों के मामलों में जमानत की कठिनाई को रेखांकित करता है, जहां ट्रायल में सालों लग जाते हैं। 

आगे क्या? अपील की संभावना, लेकिन जेल यात्रा जारी हुसैन के वकील सुप्रीम कोर्ट में अपील करने पर विचार कर रहे हैं। फिलहाल, वे तिहाड़ जेल में बंद हैं। यह फैसला न सिर्फ हुसैन के लिए झटका है, बल्कि 2020 दंगों के पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की उम्मीद जगाता है। अंकित शर्मा के परिवार ने स्वागत किया, कहा, "कानून अपना काम कर रहा है।" लेकिन सवाल बाकी है कि कब होगा पूरा मुकदमा?