नई दिल्ली, 21 सितंबर 2025 भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) की निष्पक्षता पर सवाल उठने का सिलसिला नया नहीं है, लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने इस बहस को और हवा दी है। विपक्ष, खासकर कांग्रेस, द्वारा आयोग पर लगाए गए 'वोट चोरी' और पक्षपात के आरोपों का जवाब देने का जिम्मा अब बीजेपी के दो वरिष्ठ नेता – रविशंकर प्रसाद और अनुराग ठाकुर – ने उठाया है। सवाल यह है कि क्या ये दोनों नेता अब आयोग के अनौपचारिक प्रवक्ता बन गए हैं, या फिर चुनाव आयोग का रुख बीजेपी के साथ मिलता-जुलता हो गया है? हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ईसीआई पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर 'फर्जी वोटिंग' हुई, जिसमें आयोग की मिलीभगत थी। इसके जवाब में ईसीआई ने राहुल को नोटिस जारी किया, लेकिन बीजेपी के रविशंकर प्रसाद और अनुराग ठाकुर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विपक्ष पर तीखा हमला बोला। प्रसाद ने कहा, "विपक्ष का काम केवल झूठ फैलाना है। वे आयोग की स्वायत्तता पर सवाल उठाकर लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं।" अनुराग ठाकुर ने भी राहुल के आरोपों को 'हास्यास्पद' करार देते हुए कहा, "कांग्रेस हार का ठीकरा आयोग पर फोड़ रही है, क्योंकि उनके पास कोई नीति या नेतृत्व नहीं है।" लेकिन विपक्ष ने पलटवार करते हुए बीजेपी पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाया। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, "अनुराग ठाकुर ने खुद 2024 में छह सीटों पर फर्जी वोटिंग का आरोप लगाया था। तब आयोग ने उन्हें नोटिस क्यों नहीं भेजा? क्या बीजेपी को विशेष छूट है?" यह सवाल इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि ठाकुर और प्रसाद जैसे नेता बार-बार आयोग के बचाव में सामने आ रहे हैं, जबकि विपक्ष के सवालों का जवाब देना आयोग का काम है। 2025 में हुए एक स्वतंत्र सर्वे के अनुसार, देश में 34% मतदाता अब ईसीआई की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं, जो 2019 के 15% से कहीं अधिक है। विपक्ष का दावा है कि बीजेपी और आयोग के बीच 'साठगांठ' है, जिसके तहत बीजेपी नेता आयोग के पक्ष में बयानबाजी कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, रविशंकर प्रसाद ने हाल ही में बिहार में एक रैली में कहा, "चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किया है। विपक्ष को अपनी हार स्वीकार करनी चाहिए।" लेकिन विपक्ष पूछता है कि आयोग खुद क्यों नहीं जवाब देता? दूसरी ओर, अनुराग ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश में एक सभा में विपक्ष को 'देशद्रोही ताकतों' का साथ देने वाला बताया और कहा, "आयोग ने पारदर्शी तरीके से काम किया है। विपक्ष का SIR (संभावित रूप से कोई चुनावी सिस्टम) विरोध केवल वोट बैंक की राजनीति है।" लेकिन ठाकुर के पुराने बयानों, जिसमें उन्होंने आयोग पर सवाल उठाए थे, को विपक्ष अब उनके खिलाफ हथियार बना रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी नेताओं का आयोग के पक्ष में बार-बार बोलना एक रणनीति हो सकती है, जिससे विपक्ष के आरोपों को कमजोर किया जाए। लेकिन इससे यह धारणा भी बन रही है कि आयोग अपनी स्वायत्तता खो रहा है। क्या रविशंकर प्रसाद और अनुराग ठाकुर वाकई आयोग के प्रवक्ता बन गए हैं, या यह बीजेपी की राजनीतिक चाल है? जनता के बीच बढ़ता अविश्वास और आयोग की चुप्पी इस सवाल को और गहरा रही है।
चुनाव आयोग से सवालों पर बीजेपी का जवाब: रविशंकर प्रसाद और अनुराग ठाकुर प्रवक्ता बने या आयोग बीजेपी में शामिल?