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Saturday, 20 September 2025

सऊदी-पाक रक्षा संधि: भारत के लिए नया खतरा या कूटनीतिक चुनौती?

सऊदी-पाक रक्षा संधि: भारत के लिए नया खतरा या कूटनीतिक चुनौती?
नई दिल्ली: सऊदी अरब और परमाणु-सशस्त्र पाकिस्तान के बीच 17 सितंबर 2025 को रियाद में हस्ताक्षरित 'रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौता' (SMDA) ने क्षेत्रीय भू-राजनीति को हिला दिया है। सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा दस्तखत वाले इस समझौते में दोनों देशों ने किसी भी हमले को एक-दूसरे पर हमला माना है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने कहा कि भारत-पाकिस्तान युद्ध की स्थिति में सऊदी पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होगा। यह समझौता इजरायल के कतर पर हालिया हमले के बाद आया, लेकिन भारत के लिए कई गंभीर सवाल खड़े कर गया। 

समझौते की मुख्य बातें दशकों पुराने सैन्य सहयोग को औपचारिक रूप देने वाला यह pact सऊदी के अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर घटते भरोसे का नतीजा है। पाकिस्तान ने 1967 से अब तक 8,000 से अधिक सऊदी सैनिकों को ट्रेनिंग दी है। संयुक्त बयान में कहा गया कि यह "रक्षा सहयोग बढ़ाने और संयुक्त प्रतिरोध मजबूत करने" का उद्देश्य रखता है। सऊदी अधिकारी इसे "सभी सैन्य साधनों वाला व्यापक रक्षात्मक समझौता" बता रहे, जबकि पाकिस्तानी मंत्री ने पुष्टि की कि परमाणु क्षमता सऊदी के लिए उपलब्ध हो सकती है। विशेषज्ञ इसे पाकिस्तान की परमाणु क्षमता को मध्य पूर्व में लाने का प्रयास मानते हैं। 

भारत के सामने प्रमुख सवाल मई 2025 के भारत-पाक सैन्य संघर्ष के बाद यह समझौता चिंता बढ़ा रहा है। भारत का विदेश मंत्रालय इसका "राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव" अध्ययन करेगा। मुख्य सवाल:

 1. तनाव बढ़ेगा?

आसिफ के बयान से पाकिस्तान की आक्रामकता मजबूत हो सकती है। विशेषज्ञ इयान ब्रेमर कहते हैं, "भारत को अब सऊदी हस्तक्षेप की गणना करनी पड़ेगी।" सऊदी का वित्तीय समर्थन पाकिस्तान के हथियारों को अपग्रेड कर सकता है।

 2. परमाणु खतरा?

पाकिस्तान के परमाणु हथियार अब सऊदी के लिए उपलब्ध। यदि मध्य पूर्व में इस्तेमाल हो, तो NPT को चुनौती मिलेगी। भारत के लिए जोखिम: क्षेत्रीय संघर्षों में अप्रत्यक्ष प्रभाव।

 3. भारत-सऊदी संबंध?

सऊदी भारत का तीसरा बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है। IMEC गलियारे में सऊदी महत्वपूर्ण। क्या पाकिस्तान प्राथमिकता बनेगा? विदेश मंत्रालय की उम्मीद: "साझेदारी संवेदनशीलताओं को ध्यान में रखे।" 

4. 'इस्लामिक नाटो'?

 अन्य अरब देश शामिल हो सकते हैं, जो पाकिस्तान को मजबूत करेगा। चीन को फायदा, अमेरिका को चुनौती। भारत को इजरायल-अमेरिका से सहयोग बढ़ाना पड़ेगा। 

 भारत की प्रतिक्रिया भारत सतर्क है। विदेश मंत्रालय इसे "पुरानी व्यवस्था का औपचारिकीकरण" कह रहा, लेकिन विश्लेषण जारी। संभावित कदम: सऊदी से कूटनीतिक बातचीत, इजरायल से सैन्य सहयोग। विशेषज्ञ: आर्थिक बंधनों का लाभ उठाएं, क्योंकि सऊदी भारत को महत्वपूर्ण मानता है। यह pact शक्ति संतुलन बदल सकता है, लेकिन भारत की मजबूत क्षमता इसे संभाल लेगी। सवाल बाकी: खतरा या दिखावा? समय बताएगा।