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Saturday, 27 September 2025

फिलिस्तीन पर इजरायली कब्जा: नेतन्याहू की टिप्पणी से विवाद, क्या है ऐतिहासिक और नैतिक सवाल?

फिलिस्तीन पर इजरायली कब्जा: नेतन्याहू की टिप्पणी से विवाद, क्या है ऐतिहासिक और नैतिक सवाल?
न्यूयॉर्क: इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने को "राष्ट्रीय आत्महत्या" करार दिया, जिसने इजरायल-फिलिस्तीन विवाद को फिर से वैश्विक चर्चा का केंद्र बना दिया। यह बयान उस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में आया है, जहां फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर इजरायल का कब्जा और यहूदी बस्तियों का विस्तार दशकों से विवाद का कारण रहा है। कई लोग यह सवाल उठाते हैं कि जिन फिलिस्तीनियों ने ऐतिहासिक रूप से यहूदियों को शरण दी थी, अब उनकी जमीन पर कब्जा कर इजरायल हमास और फिलिस्तीनी अथॉरिटी को हटाने की कोशिश क्यों कर रहा है? साथ ही, नेतन्याहू के बयान ने इस बहस को और तेज कर दिया है कि क्या इजरायल का कब्जा नियंत्रित या समाप्त किया जाना चाहिए। 

 ऐतिहासिक संदर्भ 19वीं और 20वीं सदी में यहूदियों ने यूरोप और अन्य क्षेत्रों में उत्पीड़न का सामना करने के बाद फिलिस्तीन में शरण ली थी। उस समय यह क्षेत्र ऑटोमन साम्राज्य और बाद में ब्रिटिश शासन के अधीन था। 1948 में इजरायल के गठन के बाद, जिसे फिलिस्तीनी "नकबा" (विपदा) कहते हैं, लाखों फिलिस्तीनी अपने घरों से विस्थापित हुए। 1967 के छह-दिवसीय युद्ध में इजरायल ने गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अधिकांश देश अवैध मानते हैं। इसके बावजूद, इजरायल ने इन क्षेत्रों में अपनी सैन्य मौजूदगी और यहूदी बस्तियों को बढ़ाया, जिसे फिलिस्तीनी और उनके समर्थक "कब्जा" करार देते हैं। 

 नेतन्याहू का रुख और विवाद नेतन्याहू ने अपने संयुक्त राष्ट्र भाषण में कहा कि फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता इजरायल की सुरक्षा के लिए खतरा है। उन्होंने गाजा में हमास के खिलाफ सैन्य अभियान को "अंत तक ले जाने" का वादा किया और फिलिस्तीनी अथॉरिटी के प्रभाव को कमजोर करने की नीति का संकेत दिया। उनके इस भाषण के दौरान कई देशों के प्रतिनिधियों ने विरोध में सभागार से वॉकआउट किया। हमास ने टेलीग्राम पर बयान जारी कर नेतन्याहू के भाषण को "झूठों का पुलिंदा" और "भ्रामक" बताया, साथ ही गाजा में हिंसा रोकने और इजरायल को क्षेत्र से हटाने की अपील की। नेतन्याहू का यह बयान कि फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता नहीं दी जानी चाहिए, कई लोगों के लिए अनुचित है, क्योंकि उनका मानना है कि फिलिस्तीनियों ने ऐतिहासिक रूप से यहूदियों को शरण दी थी, और अब उनकी जमीन पर कब्जा कर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। 

 फिलिस्तीनी दृष्टिकोण फिलिस्तीनी संगठन, जैसे हमास और फिलिस्तीनी अथॉरिटी, लंबे समय से स्वतंत्र राज्य की मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि इजरायल का गाजा, वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम पर कब्जा अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 242 और 2334, का उल्लंघन है। हमास ने अपने बयान में वैश्विक समुदाय से अपील की कि इजरायल को कब्जे वाले क्षेत्रों से हटने के लिए मजबूर किया जाए और फिलिस्तीन को पूर्ण राज्य के रूप में मान्यता दी जाए। फिलिस्तीनी समर्थकों का कहना है कि इजरायल का कब्जा न केवल अवैध है, बल्कि यह एक नैतिक अन्याय भी है, क्योंकि फिलिस्तीनी अपनी ही जमीन पर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 

क्या इजरायल को नियंत्रित या हटाया जाना चाहिए? नेतन्याहू के बयान ने इस सवाल को और प्रासंगिक बना दिया है कि क्या इजरायल का फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर नियंत्रण नियंत्रित या पूरी तरह समाप्त किया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर दो प्रमुख दृष्टिकोण हैं: 

इजरायल का नियंत्रण समाप्त करना*

 फिलिस्तीनी समर्थक और कई अंतरराष्ट्रीय संगठन मांग करते हैं कि इजरायल को गाजा, वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम से पूरी तरह हटना चाहिए। उनका तर्क है कि यह क्षेत्र 1967 की सीमाओं के आधार पर स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य का हिस्सा होना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र और कई देश इस दो-राज्य समाधान का समर्थन करते हैं। 

नियंत्रण बनाए रखना

इजरायल का कहना है कि गाजा और वेस्ट बैंक पर उसका नियंत्रण उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है, खासकर हमास जैसे संगठनों से खतरे को देखते हुए। नेतन्याहू ने अपने भाषण में इस बात पर जोर दिया कि फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता इजरायल के लिए खतरा पैदा कर सकती है। कई फिलिस्तीनी समर्थकों का यह भी तर्क है कि जिन यहूदियों को कभी फिलिस्तीन में शरण मिली थी, अब वही कब्जे के जरिए फिलिस्तीनियों को उनकी जमीन से बेदखल कर रहे हैं। वे इसे ऐतिहासिक और नैतिक अन्याय मानते हैं और मांग करते हैं कि इजरायल को कब्जे वाले क्षेत्रों से बाहर निकाला जाए। 

 वैश्विक प्रतिक्रिया नेतन्याहू के भाषण और इजरायल की नीतियों की कई देशों ने निंदा की है। आयरलैंड, नॉर्वे और स्पेन जैसे देशों ने हाल के वर्षों में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दी है, जिसे इजरायल ने "पागलपन" करार दिया। संयुक्त राष्ट्र के कई प्रस्ताव इजरायल से कब्जे वाले क्षेत्रों से हटने की मांग करते हैं, लेकिन अमेरिका और कुछ पश्चिमी देश इजरायल के मजबूत समर्थक बने हुए हैं। नेतन्याहू के भाषण के दौरान सभागार से वॉकआउट ने इजरायल की बढ़ती वैश्विक अलगाव को उजागर किया है। 

 इजरायल-फिलिस्तीन विवाद एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है, जिसमें ऐतिहासिक, धार्मिक, राजनीतिक और नैतिक आयाम शामिल हैं। नेतन्याहू का यह बयान कि फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता नहीं दी जानी चाहिए, ने न केवल फिलिस्तीनियों के बीच आक्रोश पैदा किया है, बल्कि यह सवाल भी उठाया है कि क्या इजरायल का कब्जा नैतिक और कानूनी रूप से उचित है। फिलिस्तीनी समर्थकों का मानना है कि उनकी जमीन पर इजरायल का नियंत्रण समाप्त होना चाहिए, जबकि इजरायल अपनी सुरक्षा का हवाला देता है। वैश्विक समुदाय इस मुद्दे पर बंटा हुआ है, और गाजा में युद्धविराम या शांति वार्ता की संभावनाएं फिलहाल कमजोर दिख रही हैं। इस विवाद का समाधान निकालना वैश्विक कूटनीति के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।