वैश्विक भू-राजनीति में शक्ति का संतुलन तेजी से बदल रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका ने इज़राइल और यूक्रेन जैसे रणनीतिक सहयोगियों के माध्यम से अरब जगत और रूस पर नियंत्रण बनाए रखने की नीति अपनाई है। दूसरी ओर, चीन एक नई विश्व व्यवस्था (न्यू वर्ल्ड ऑर्डर) स्थापित करने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है, जो पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है।
मध्य पूर्व में अमेरिका ने इज़राइल को अपने प्रमुख सहयोगी के रूप में स्थापित कर अरब देशों पर प्रभाव बनाए रखा है। इज़राइल को सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक समर्थन प्रदान कर अमेरिका क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में रखता है। 1979 के कैंप डेविड समझौते से लेकर हाल के अब्राहम समझौतों तक, अमेरिका ने अरब देशों को इज़राइल के साथ संबंध सामान्यीकरण के लिए प्रेरित किया। हाल ही में मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप में सैन्य गतिविधियों को लेकर इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा अमेरिका से कूटनीतिक हस्तक्षेप की मांग इस रणनीति का हिस्सा है। गाज़ा युद्ध के बीच यह तनाव और बढ़ गया है, जहां इज़राइल-अमेरिका गठजोड़ क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर रहा है। इसी तरह, यूक्रेन संकट में अमेरिका और नाटो की भूमिका रूस को नियंत्रित करने की रणनीति का हिस्सा है। 2022 से शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका ने यूक्रेन को व्यापक सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की, जिससे रूस पर भू-राजनीतिक और आर्थिक दबाव बढ़ा। नाटो के विस्तार और यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति ने रूस को अपने प्रभाव क्षेत्र में खतरा महसूस कराया है। यह रणनीति अमेरिका को वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर देती है।
चीन 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (BRI), वैश्विक दक्षिण के साथ सहयोग, और सैन्य आधुनिकीकरण के जरिए एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था की नींव रख रहा है। हाल ही में बीजिंग में सोमालिया के रक्षा मंत्री अहमद मौलिम फकी और चीनी रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून के बीच हुई मुलाकात, जो चार दशकों में पहली उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता थी, इस बात का संकेत है कि चीन हॉर्न ऑफ अफ्रीका और हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी रणनीतिक उपस्थिति बढ़ा रहा है। फोरम ऑन चाइना-एफ्रिका कोऑपरेशन (FOCAC) के तहत सैन्य और आर्थिक सहयोग को गहरा करने की चीन की पहल अमेरिकी प्रभाव को कम करने की दिशा में एक कदम है। चीन का 'वन चाइना' सिद्धांत और वैश्विक सुरक्षा शासन को अधिक समान बनाने की वकालत भी नई व्यवस्था की ओर इशारा करती है। ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों के जरिए चीन रूस, ईरान और अन्य देशों के साथ मिलकर बहुध्रुवीय विश्व की स्थापना के लिए प्रयासरत है। यह दृष्टिकोण पश्चिमी प्रभुत्व को सीधे चुनौती देता है और वैश्विक दक्षिण के देशों को एकजुट करने पर केंद्रित है।
आने वाला परिदृश्य
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका की इज़राइल और यूक्रेन के जरिए नियंत्रण की रणनीति और चीन की नई विश्व व्यवस्था की महत्वाकांक्षा वैश्विक शक्ति संतुलन को लंबे समय तक प्रभावित करेंगी। मध्य पूर्व में इज़राइल के माध्यम से अरब देशों पर प्रभाव और यूक्रेन के जरिए रूस पर दबाव बनाए रखने की अमेरिकी नीति क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को आकार दे रही है। वहीं, चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक साझेदारियां, विशेष रूप से अफ्रीका और एशिया में, एक नई व्यवस्था की ओर इशारा करती हैं। यह भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप में दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकती है। निष्कर्षतः, वैश्विक मंच पर अमेरिका और चीन के बीच यह शक्ति का खेल जटिल और गतिशील है। जहां अमेरिका अपनी पारंपरिक रणनीतियों के जरिए प्रभुत्व बनाए रखना चाहता है, वहीं चीन एक समावेशी और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की नींव रख रहा है। इसका परिणाम वैश्विक व्यवस्था के भविष्य को तय करेगा।