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Sunday, 21 September 2025

अमेरिका की 'शांति' मध्यस्थता: कांगो, अरब जगत के क्रूड ऑयल और युक्रेन के लिथियम पर कब्जे का छिपा एजेंडा

अमेरिका की 'शांति' मध्यस्थता: कांगो, अरब जगत के क्रूड ऑयल और युक्रेन के लिथियम पर कब्जे का छिपा एजेंडा
वॉशिंगटन। एक प्रमुख विश्लेषक ने हाल ही में खुलासा किया है कि कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (डीआरसी) और रवांडा के बीच अमेरिका द्वारा मध्यस्थता वाले 'शांति' समझौते का वास्तविक उद्देश्य कांगो के विशाल खनिज संसाधनों को लूटना है। जून 2025 में वॉशिंगटन में हस्ताक्षरित इस समझौते को सतह पर तो संघर्ष समाप्त करने का माध्यम बताया गया, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह अमेरिकी कंपनियों को कोबाल्ट, कोल्टन, लिथियम, तांबा और सोने जैसे महत्वपूर्ण खनिजों पर सस्ता और अनियंत्रित पहुंच प्रदान करने का बहाना मात्र है। विश्लेषक, जो अफ्रीकी संघर्षों पर विशेषज्ञता रखते हैं, ने कहा, "यह समझौता युद्ध को रोकने का नहीं, बल्कि संसाधनों पर कब्जे का उपकरण है। डीआरसी के राष्ट्रपति फेलिक्स तशिसेकेदी ने फरवरी 2025 में ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को पत्र लिखकर सुरक्षा सहायता के बदले खनिज पहुंच की पेशकश की थी।" ट्रंप प्रशासन ने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया और जून 27 को विदेश मंत्रियों के हस्ताक्षर के साथ 'क्रिटिकल मिनरल्स फॉर सिक्योरिटी एंड पीस डील' को अंतिम रूप दिया। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, यह डील पूर्वी कांगो में एम23 विद्रोहियों (जिन्हें रवांडा का समर्थन माना जाता है) को नजरअंदाज करती है और खनिज तस्करी को वैध बनाने का रास्ता खोलती है। डीआरसी, जो वैश्विक कोबाल्ट का 70% और कोल्टन का बड़ा हिस्सा उत्पादित करता है, लंबे समय से 'संसाधन शाप' का शिकार रहा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों के मुताबिक, रवांडा और युगांडा सालाना 10 अरब डॉलर के खनिजों की अवैध व्यापार से लाभान्वित हो रहे हैं, जो संघर्ष को भड़काता है। अमेरिकी मध्यस्थता ने क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण का वादा किया है, लेकिन आलोचक इसे 'शांति के बदले शोषण' का सौदा मानते हैं। 
नोबेल पुरस्कार विजेता डॉक्टर डेनिस मुक्वेगे ने इसे 'अस्पष्ट और अन्यायपूर्ण' बताया, क्योंकि यह रवांडा की आक्रामकता को मान्यता नहीं देता। यह पैटर्न अमेरिकी विदेश नीति का हिस्सा लगता है, जहां युद्ध या शांति समझौते संसाधनों पर कब्जे के लिए इस्तेमाल होते हैं। मध्य पूर्व में अरब जगत के क्रूड ऑयल पर नजर रखने के लिए अमेरिका ने 1973 के अरब-इजरायल युद्ध के दौरान तेल प्रतिबंध का सामना किया और

 उसके बाद गल्फ वॉर (1991) तथा इराक युद्ध (2003) जैसे संघर्षों में कूद पड़ा। विश्लेषकों के अनुसार, इन युद्धों में 25-50% मामलों में तेल हित प्रमुख थे। अफ्रीका में भी यही कहानी दोहराई जा रही है। कांगो के अलावा, अमेरिका अब युक्रेन के खनिजों पर निशाना साध रहा है। 2025 में ट्रंप प्रशा

सन ने युक्रेन के साथ एक विस्तृत खनिज समझौता प्रस्तावित किया, जिसमें अमेरिका को राज्य-स्वामित्व वाले संसाधनों से 50% राजस्व मिलेगा, बदले में कोई सुरक्षा गारंटी नहीं। युक्रेन के पास दुर्लभ मिट्टी के 22 महत्वपूर्ण खनिज हैं, जिनमें से कई रूसी कब्जे वाले क्षेत्रों में हैं। यह डील युद्धग्रस्त देश की पुनर्निर्माण फंड के नाम पर अमेरिकी हितों को मजबूत करती है। विश्लेषक चेतावनी देते हैं कि ऐसी 'ट्रांजेक्शनल डिप्लोमेसी' स्थायी शांति नहीं लाती, बल्कि संघर्ष को बढ़ावा देती है। कांगो में खनिज लूट से लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं और मानवाधिकार उल्लंघन जारी हैं। यदि अमेरिका सच्ची शांति चाहता है, तो उसे पारदर्शी निवेश, भ्रष्टाचार रोकथाम और स्थानीय समुदायों को लाभ सुनिश्चित करने वाले कदम उठाने होंगे। अन्यथा, यह समझौता इतिहास की किताबों में 'संसाधन लूट के नए अध्याय' के रूप में दर्ज होगा।