अंग्रेजी अखबार "तेहरान टाइम्स" ने एक विशेष रिपोर्ट में ईरान के खिलाफ इजरायली शासन के 12-दिवसीय आक्रमण के दौरान जर्मनी की सैन्य सहभागिता का पर्दाफाश किया है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि बर्लिन की तेल अवीव के लिए समर्थन सिर्फ राजनीतिक बयानों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें सैन्य बल भेजना और मैदानी सहयोग शामिल था।
"तेहरान टाइम्स" के अनुसार, जून के महीने में इजरायल द्वारा ईरान की सैन्य, परमाणु और असैन्य सुविधाओं पर 12-दिन के हमले के दौरान, जर्मनी उन गिने-चुने देशों में शामिल था जिसने खुलकर इस कार्रवाई का समर्थन किया। जर्मन चांसलर 'फ़्रीडरिश मेर्ट्स' ने उस समय कहा था कि इजरायल "पश्चिम का गंदा काम" कर रहा है, इस बयान ने जर्मनी और ईरान दोनों जगह जनता में गुस्सा पैदा कर दिया।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, बर्लिन ने इजरायली शासन की सेना के साथ एक गोपनीय समझौते के तहत, अपने सैनिकों का एक दल मकबूज़ा क्षेत्रों में भेजा ताकि वे सैन्य अभियानों में हिस्सा ले सकें। रिपोर्ट के अनुसार, यह सहयोग पूर्ण गोपनीयता के तहत किया गया, लेकिन अब इन सैनिकों की मौजूदगी और पहचान से जुड़े दस्तावेज ईरानी अधिकारियों के पास हैं।
पार्स टुडे के मुताबिक, मेहर न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पहली बार नहीं है जब जर्मनी ने ईरान पर हमले में भूमिका निभाई है। आठ साल तक ईरान के खिलाफ इराक़ की बासी सरकार द्वारा लड़े गए युद्ध के दौरान भी, सद्दाम शासन को जर्मन रासायनिक हथियार दिए गए थे। हालांकि, इस ताजा युद्ध में, ईरान की जवाबी कार्रवाई तेज होने और खतरा बढ़ने के बाद जर्मन सैनिकों ने मक़बूज़ा क्षेत्रों को छोड़ दिया है।
जबकि जर्मनी का संविधान संसद की मंजूरी के बिना बाहरी युद्धों में सैन्य भेजने पर प्रतिबंध लगाता है, अभी तक स्पष्ट नहीं है कि यह कार्रवाई संसद सदस्यों द्वारा मंजूर की गई थी या नहीं। यह खुलासा ऐसे समय में हुआ है जब मक़बूज़ा क्षेत्रों में सुरक्षा संकट गहराया हुआ है जहां 2024 में जासूसी के मामलों में 400 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। (AK)