बिहार के बलरामपुर से चार बार के विधायक और CPI(ML) नेता महबूब आलम एक ऐसी शख्सियत हैं, जो सादगी और जनसेवा की मिसाल हैं। जहां कई नेता सत्ता पाते ही ऐशो-आराम की जिंदगी चुन लेते हैं, वहीं महबूब आलम ने अपनी जड़ों को कभी नहीं छोड़ा। 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार में सबसे ज्यादा मार्जिन से जीत हासिल करने वाले इस नेता की संपत्ति सबसे कम रही। पढ़ाई के दौरान मजदूरी करने वाले महबूब आलम ने किसानों और मजदूरों के हक की लड़ाई को अपना मिशन बनाया। राजनीति में आने के बाद भी उनका रहन-सहन वही सादा रहा। न महंगा बंगला, न роскошная गाड़ी—उनका घर आज भी गांव में एक साधारण कच्चा मकान है। सरकारी बंगले की चाहत तो दूर, वह अक्सर साइकिल या पुरानी मोटरसाइकिल पर अपने क्षेत्र में लोगों से मिलते-जुलते दिखाई देते हैं। जब बिहार विधानसभा का सत्र चलता है, तो महबूब आलम ऑटो-रिक्शा में बैठकर विधानसभा पहुंचते हैं। न अहंकार, न दिखावा, न पैसों की लालसा—सिर्फ जनता की सेवा का जुनून। ऐसे जनसेवक आज के दौर में दुर्लभ हैं, जो सत्ता को सेवा का माध्यम मानते हैं, न कि ऐशो-आराम का जरिया। महबूब आलम जैसे नेता हमें याद दिलाते हैं कि सच्ची राजनीति वही है, जो जमीन से जुड़ी हो और जनता के दुख-दर्द को समझे। उनकी सादगी और समर्पण हर किसी के लिए प्रेरणा है।
“सादगी के सिरमौर: महबूब आलम, बिहार के असली जनसेवक”