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August 03, 2025
शिबू सोरेन: जल, जंगल, जमीन की आवाज को संसद तक ले जाने वाला युगपुरुष।
शिबू सोरेन: जल, जंगल, जमीन की आवाज को संसद तक ले जाने वाला युगपुरुष।
शिबू सोरेन: जल, जंगल, जमीन की आवाज को संसद तक ले जाने वाला युगपुरुष झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संस्थापक शिबू सोरेन का 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया। दिल्ली के गंगा राम अस्पताल में एक महीने तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद उन्होंने 4 अगस्त 2025 को सुबह करीब 9 बजे अंतिम सांस ली। उनकी किडनी की समस्या ने उनके स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया था। उनके बेटे, झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर इस दुखद खबर को साझा किया। शिबू सोरेन, जिन्हें प्यार से "दिशोम गुरु" कहा जाता था, ने झारखंड के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे शिबू ने आदिवासी समुदायों की आवाज को न केवल बिहार (तत्कालीन झारखंड) में, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी बुलंद किया। उनके नेतृत्व में जल, जंगल, जमीन के अधिकारों के लिए आंदोलन ने आदिवासियों को उनके हक दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
जल, जंगल, जमीन का आंदोलन और शिबू सोरेन का योगदान
1990 के दशक में, जब उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के आदिवासी बहुल जिलों में जल, जंगल, जमीन के सवाल पर आंदोलन भड़का, तो इसके पीछे शिबू सोरेन की प्रेरणा थी। आदिवासी युवाओं ने उनके मार्गदर्शन में शोषण के खिलाफ आवाज उठाई और मालिकाना हक की मांग की। इस आंदोलन की प्रेरणा तब और स्पष्ट हुई, जब पता चला कि झारखंड से आए छात्रों के एक समूह ने शिबू सोरेन से मुलाकात की थी। उन्होंने यूपी में आदिवासियों की जमीन छीने जाने और सिंगरौली में औद्योगिकरण के नाम पर तबाही की कहानी साझा की थी। शिबू ने न केवल उनकी बात सुनी, बल्कि उन्हें संगठित कर आंदोलन को दिशा दी।
झारखंड निर्माण में शिबू की भूमिका
जब 2000 में झारखंड एक अलग राज्य बना, तो यह शिबू सोरेन और उनके आंदोलन की सबसे बड़ी जीत थी। उन्होंने आदिवासियों और हाशिए पर पड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाने के लिए अथक प्रयास किया। उनके नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने न केवल राजनीतिक मंच प्रदान किया, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के लिए भी संघर्ष किया।
युगपुरुष की विरासत
शिबू सोरेन जैसे नेता सदियों में एक बार जन्म लेते हैं। उनकी मृत्यु भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत है। आदिवासी छात्र नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए वे एक प्रेरणा स्रोत थे, जो बार-बार उनसे मार्गदर्शन लेने जाते थे। उनकी सादगी, समर्पण और संघर्ष की कहानी हमेशा जीवित रहेगी।
दिशोम गुरु को अंतिम जोहार
शिबू सोरेन को उनकी कर्मभूमि और उनके संघर्ष के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उनकी विरासत उन लाखों लोगों में जीवित रहेगी, जिनके लिए उन्होंने आवाज उठाई। दिशोम गुरु को विनम्र श्रद्धांजलि। 🙏