अमरीका के अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने गुजरात के बिलक़ीस बानो के साथ सामूहक दुष्कर्म के आरोपियों को सज़ा का समय पूरा होने से पहले रिहा करने पर इसे न्याय का उपहास बताया है।इस आयोग के अनुसार यह काम अनुचित है जो न्याय का उपहास है।
USCIRF के आयुक्त ने कहा कि समय से पहले आरोपियों को स्वतंत्र कर देना, धार्मिक आल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा में शामिल लोगों को सज़ा से बचाने का एक तरीक़ा है।
दूसरी ओर भारत के भीतर भी बिलक़ीस बानो सामूहिक दुष्कर्म मामले के 11 दोषियों को समय से पहले रिहा किये जाने की कड़ी आलोचना की जा रही है। इसी बीच हज़ारों नागरिकों ने, जिनमें महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं, सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि बिलक़ीस बानो मामले में संलिप्त आरोपियों को समय से पहले रिहा किये जाने के फैसले को रद्द किया जाए।
उल्लेखनीय है कि सन 2002 में होने वाले गोधरा कांड के बाद गुजरात में दंगे हुए। इन दंगों के दौरान गर्भवती महिला बिलक़ीस बानों के साथ सामूहिक बलात्कार किय गया। उनकी 5 वर्ष की बेटी की हत्या कर दी गई। बिलक़ीस बानो दुष्कर्म मामले में मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने सन 2008 में 11 आरोपियों को सामूहिक दुष्कर्म का दोषी मानते हुए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी।
याद रहे कि जिस दिन भारत अपना 75वां स्वातंत्रता दिवस मना रहा था उसी दिन गुजरात की सरकार ने गैंग रेप और और सात लोगों के सामूहिक नरसंहार के सज़ा याफ़्ता अपराधियों को आम माफ़ी देकर जेल से रिहा कर दिया। गुजरात सरकार द्वारा रेप के आरोपियों को जेल से रिहा करने के फैसले पर पूरे देश में इंसाफ़ पसंद हल्क़ों में इसकी निंदा की जा रही है।