ईरान और चीन के राष्ट्रपतियों ने मंगलवार को बीजिंग में भेंटवार्ता में परस्पर संबन्धों में विस्तार पर बल दिया।
सैयद इब्राहीम रईसी ने यह बात बल देकर कही कि इस्लामी गणतंत्र ईरान और चीन के शत्रुओं के दबावों के बावजूद दोनो देशों के संबन्धों में विस्तार हुआ है।
दूसरी ओर चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग का कहना है कि उनका देश ईरान के साथ संबन्धों में विस्तार पर कटिबद्ध है। ईरान और चीन की ओर से परस्पर सबंन्धों को विस्तृत करने पर ज़ोर, कई आयामों से समीक्षा योग्य है।
पहली बात तो यह है कि अपनी भौगोलिक स्थति, तेल और गैस के भण्डारों, कई प्रकार की खानों तथा क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रभावी भूमिका के कारण ईरान, चीन के लिए बहुत महत्व रखता है। यही कारण है कि हालिया वर्षों में अमरीका की ओर से ईरान के विरुद्ध अत्यधिक दबाव की नीति अपनाए जाने के बावजूद चीन इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ अपने संबन्धों को विस्तृत करने पर बल देता रहा है। ईरान की ओर से चीन के लिए तेल की सप्लाई अब भी जारी है। चीन ने इस बारे में अमरीकी धमकियों की ओर कोई विशेष ध्यान ही नहीं दिया है।
दूसरी ओर ईरान आर्थिक, व्यापारिक, औद्योगिक, ऊर्जा, निर्माण, कृषि और आधुनिक तकनीक के क्षेत्रों में चीन के साथ द्विपक्षीय संबन्धों को विकसित करने की महत्वपूर्ण क्षमता रखता है। एक अन्य विषय यह भी है कि पश्चिमी एशिया में कोई भी देश शिक्षित अधिक जनसंख्या, विशेषज्ञों की बड़ी तादाद, विस्तृत भू-भाग और मज़बूत आधारभूत ढांचे की दृष्टि से ईरान के जैसा नहीं है।
दूसरा वह विषय जिसने चीन के निकट ईरान के महत्व को कई गुना बढ़ा दिया है वह है अमरीका के नेतृत्व में पश्चिम के वर्चस्व के मुक़ाबले में दोनो देशों के समान दृष्टिकोण। दोनो ही देश एकध्रुवीय व्यस्था के मुक़ाबले में बहुध्रुवीय व्यवस्था के पक्षधर हैं। उनका प्रयास हैकि अन्य देशों पर पश्चिमी मूल्यों और पश्चिमी संस्कृति को थोपने से रोका जाए। इस बात को हमे भूलना नहीं चाहिए कि अमरीका की ओर से चीन और रूस की कड़ी आलोचना इसलिए भी की जाती है कि दोनो ही देश अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पश्चिम की उदारवादी व्यवस्था को परिवर्तित करने के लिए प्रयासरत हैं।
इस संदर्भ में चीन के राष्ट्रपति कहते हैं कि खेद की बात है कि यह देश, आज भी शीतयुद्ध के ग़लत क्रियाकलापों पर बल दे रहे हैं। यही बात विश्व शांति और अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों को नुक़सान पहुंचने का कारण बनी है। इन बातों के अतिरिक्त एक वह विषय जिसपर दोनो देशों का संयुक्त दृष्टिकोण है वह है अमरीका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों की ओर से थोपे जाने वाले अत्याचारपूर्ण प्रतिबंध।
यह वे प्रतिबंध हैं जिनके कारण चीन और ईरान सहित प्रतिबंधों का दंश झेलने वाले देशों को बहुत क्षति हुई है। वैसे आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में भी बीजिंग और तेहरान एक जैसी सोच रखते हैं। चीन के राष्ट्रपति ने आतंकवादा के विरुद्ध संघर्ष में ईरान के प्रयासों की सराहना करते हुए परमाणु समझौते के यथाशीघ्र लागू किये जाने पर बल दिया है।