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यमन ने सऊदी अरब के सामने रखी अजीब शर्त, यमनियों की जाल में फंसा रियाज़...

Thursday, 7 November 2024

ट्रंप की जीत के बाद ईरान को कोई फर्क नही पड्ता ईरान की खुद की विदेश पॉलिसी ओर आत्म निर्भर हे जो अमरीका पर निर्भर हे उसे बहुत फर्क,,,,,,

ट्रंप की जीत के बाद ईरान को कोई फर्क नही पड्ता ईरान की खुद की विदेश पॉलिसी ओर आत्म निर्भर हे जो अमरीका पर निर्भर हे उसे बहुत फर्क,,,,,,
ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई. ईरान और अमेरिका के बीच लंबे समय से दुश्मनी चली आ रही है.

अमेरिका के साथ ईरान की दुश्मनी का पहला बीज 1953 में पड़ा जब अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ने ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान में तख़्तापलट करवा दिया.

निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक़ को सत्ता से हटाकर अमेरिका ने ईरान के शाह रज़ा पहलवी के हाथ में सत्ता सौंप दी थी.

इसकी मुख्य वजह थी तेल. धर्मनिरपेक्ष नीतियों में विश्वास रखने वाले ईरानी प्रधानमंत्री ईरान के तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे. वो ईरानी शाह की ताक़त पर भी लगाम लगाना चाहते थे.

ये पहला मौक़ा था, जब अमरीका ने शांति के दौर में किसी विदेशी नेता को अपदस्थ किया था. कहा जाता है कि इस घटना के बाद एक तरह से तख़्तापलट अमेरिका की विदेश नीति का हिस्सा बन गया.

1953 में ईरान में अमेरिका ने जिस तरह से तख्तापलट किया उसी का नतीजा थी 1979 की ईरानी क्रांति.

1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति से पहले आयतुल्लाह 
 ख़ुमैनी तुर्की, इराक़ और पेरिस में निर्वासित जीवन जी रहे थे. आयतुल्लाह  ख़ुमैनी, शाह पहलवी के नेतृत्व में ईरान के पश्चिमीकरण और अमरीका पर बढ़ती निर्भरता के लिए उन्हें निशाने पर लेते थे.

ईरान में इस्लामिक क्रांति के परिणामों के तत्काल बाद ईरान और अमेरिका के राजनयिक संबंध ख़त्म हो गए थे.

तेहरान में ईरानी छात्रों के एक समूह ने अमेरिकी दूतावास को अपने क़ब्ज़े में ले लिया जो अमरीकन जासूसी अड्डा था और 52 अमेरिकी नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा था. ए अमरीका के लिए बहुत बड़
 झटका था

कहा जाता है कि इसमें आयतुल्लाह  ख़ुमैनी का भी मौन समर्थन था. अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर से इनकी मांग थी कि शाह को वापस भेजें. शाह ने ईरान से भागकर 
न्यूयॉर्क में शरण ली थी अबजो डॉलर ओर तकरीबन 20 टन सोना (गोल्ड) लेकर भागा था 

बंधकों को तब तक रिहा नहीं किया गया जब तक रोनल्ड रीगन अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन गए. आख़िरकार पहलवी की मिस्र में मौत हो गई और आयतुल्लाह ख़ुमैनी ने अपनी ताक़त को और धर्म केंद्रित किया.

इन सबके बीच सद्दाम हुसैन ने 1980 में ईरान पर हमला बोल दिया.

ईरान और इराक़ के बीच आठ सालों तक ख़ूनी युद्ध चला. इस युद्ध में अमेरिका सद्दाम हुसैन के साथ था. यहां तक कि सोवियत यूनियन ने भी सद्दाम हुसैन की मदद की थी.

बाद में अमेरिका भी सद्दाम हुसैन के ख़िलाफ़ हुआ और तब ईरान ने खुलकर इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन को सपोर्ट किया था जब तुर्की जोर्डन ओर सऊदी अरब से अमरीकन फाइटर इराक मे तबाही मचा रहे थे तब अकेला ईरान था जिसने अपने ऐरो स्पेस या इधंन पर अमरीका के लिए प्रतिबंधित कर दिया था 

अब वो ईरान नही रहा जो आम अमरीकन ओर गोदी मिडिया बता रही हे ईरान खुद आत्म निर्भर हे ओर कहा जाता हे की परमाणु संपन्न देश हे ईरान की खुद की टेक्नोलॉजी मे महत्वपूर्ण महारत हासिल हे वो खुद उडता अमरीकन ड्रोन को उतार लेता हे तो सस्ती मिसाइल टेक्नोलॉजी ओर ड्रोन टेक्नोलॉजी मे तो रूस युक्रेन युद्ध मे सबने देखा हे तो इज़राइल पर मिसाइल एटेक मे इज़राइल का आर्यन डोम भी नाकाम रहा 

ईरान खुद पेट्रोलियम प्रोडक्ट पर नही टेक्नोलॉजी ओर इतर प्रोडक्शन भी उन्की आय का महत्वपूर्ण सोरच हे तो पर्यटन भी उन्की आय का हिस्स हे