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Wednesday, 13 November 2024

केरलः 'धार्मिक व्हाट्सएप ग्रुप' और दो आईएएस अफ़सरों के निलंबन

केरलः 'धार्मिक व्हाट्सएप ग्रुप' और दो आईएएस अफ़सरों के निलंबन
गोपालकृष्णन पर इल्ज़ाम है कि उन्होंने अफ़सरों का कथित तौर पर एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया था. इसका नाम उन्होंने ‘हिंदू’ ग्रुप रखा था. (सांकेतिक तस्वीर)

केरल के नौकरशाहों के बीच इन द‍िनों भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के दो अफ़सरों का निलंबन चर्चा का विषय बना है. हालाँकि, इनके निलंबन पर अधिकतर नौकरशाहों को क़तई ताज्‍जुब नहीं हो रहा है.

हाँ, इन दो अफ़सरों ने जो कि‍या, उसने ज़रूर नौकरशाहों को बेचैन कर दिया है. ये इन दो अफ़सरों के काम को सिविल सेवा के मूल मूल्यों के उल्लंघन के तौर पर देख रहे हैं.

निलंबित अफ़सरों में एक, साल 2013 बैच के प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गोपालकृष्णन के हैं. वे उद्योग और वाणिज्य विभाग में निदेशक पद पर तैनात थे.

दूसरे अफ़सर साल 2007 बैच के प्रशांत एन हैं. वे कृषि विभाग में विशेष सचिव के पद पर थे.
गोपालकृष्णन पर इल्ज़ाम है कि उन्होंने अफ़सरों का कथित तौर पर एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया था. इसका नाम उन्होंने ‘हिंदू’ ग्रुप रखा था.

कुछ नौजवान अफ़सरों ने ऐसा ग्रुप बनाए जाने की आलोचना की. इसके बाद उन्होंने कथित तौर पर एक और ग्रुप बनाया. इस ग्रुप का नाम उन्होंने ‘मुस्लिम’ रखा.

नाम न छापने की शर्त पर कुछ सेवानिवृत्त अफ़सरों ने इस मुद्दे पर बात की. उन्होंने कहा कि सिविल सेवा के इतिहास में ‘ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था.’


देश में पहले भी मंत्रियों और अफ़सरों के बीच सार्वजनिक रूप से तक़रार होते रहे हैं.

साल 1990-91 में कर्नाटक में अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के एक अफ़सर और तब के मुख्यमंत्री एस. बंगरप्पा के बीच सार्वजनिक रूप से वाद-विवाद हुआ था.

हालाँकि, ऐसा पहले नहीं हुआ था, जैसा केरल सरकार ने इन अफ़सरों के काम के बारे में टिप्पणी की है.

केरल सरकार का कहना है कि ‘इनके काम राज्य में अखिल भारतीय सेवा के कैडरों के बीच बँटवारे को बढ़ावा देने, फूट डालने और एकजुटता को तोड़ने वाले हैं.’

‘पहली नज़र में यह भी पाया गया कि यह राज्य में अखिल भारतीय सेवाओं के कैडरों के बीच साम्प्रदायिक आधार पर समूह और गठबंधन बनाने की कोशिश है.’

जहाँ तक प्रशांत का मामला है, उनके निलंबन की वजह कुछ और है.

उन पर आरोप है कि उन्होंने वित्त विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. ए. जयतिलक के बारे में सोशल मीडिया पर ‘अपमानजनक भाषा’ का इस्तेमाल किया था.

इसे ‘गंभीर अनुशासनहीनता’ और ‘राज्य में प्रशासनिक तंत्र की सार्वजनिक छवि’ को धूमिल करने का मामला माना गया.

पहली नज़र में माना गया कि इनकी टिप्पणी भारतीय प्रशासनिक सेवा में बँटवारा पैदा कर सकती है. आपसी मनमुटाव को बढ़ावा दे सकती है.