समेत कई संगठनों ने छत्तीसगढ़ सरकार से माओवादियों के फ्रंटल समूहों के तौर पर काम करने वाले व्यक्तियों और संगठनों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है.
शुक्रवार को इस संबंध में आरएसएस से जुड़े लोग, शिक्षाविदों, वक़ीलों और रिटायर्ड अफ़सरों ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की.
माओवादियों से शांति वार्ता के ख़िलाफ़ यह प्रस्ताव ऐसे समय पर आया है, जब पिछले 15 महीनों से राज्य में माओवादियों के ख़िलाफ़ सरकार सघन अभियान चला रही है.
दिसंबर 2023 में जब छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार आई तो राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा ने माओवादियों के साथ शांति वार्ता की पेशकश की थी.
माओवादी संगठन कम से कम पांच मौक़ों पर शांति वार्ता और युद्ध विराम की पेशकश कर चुके हैं. कई नागरिक संगठनों ने भी शांति वार्ता की अपील की है.लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ऐसे प्रस्तावों को ठुकरा चुकी है.
दो हफ़्ते पहले नारायणपुर में सीपीआई माओवादी के महासचिव बसवराजू उर्फ नंबाल्ला केशव राव समेत 27 माओवादियों को सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में मारने का दावा किया था.
इंटलैक्चुअल फ़ोरम ऑफ़ छत्तीसगढ़ के बैनर तले जुटे 15 संगठन के लोगों ने सरकार को एक खुला पत्र लिखा. इस पत्र में उन्होंने मांग करते हुए कहा कि सरकार नक्सलवाद के ख़िलाफ़ अपनी कार्रवाई सशक्त रूप से जारी रखे और सुरक्षाबलों के प्रयासों को और भी मज़बूत बनाए.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया कि माओवादियों के साथ 'शांति वार्ता' की बात तभी स्वीकार्य हो सकती है, जब माओवादी हिंसा और हथियारों का त्याग करें.
छत्तीसगढ़ में माओवादियों के ख़िलाफ़ आदिवासियों को हथियार दे कर शुरु किए गए सलवा जुडूम अभियान पर सुप्रीम कोर्ट ने पांच जुलाई 2011 को रोक लगा दी थी.
वक्ताओं ने कहा कि सलवा जुडूम को बार-बार निशाने पर लेना 'माओवादी आतंक' को नैतिक छूट देने का प्रयास है, जबकि बस्तर की जनता ख़ुद इस हिंसा की सबसे बड़ा शिकार है.
जिन लोगों ने सरकार को खुली चिट्ठी में लिखी है, उनमें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस राकेश सक्सेना, सेना से जुड़े रहे मेजर जनरल मृणाल सुमन (रिटायर्ड), ब्रिगेडियर राकेश कुमार शर्मा (रिटायर्ड), पूर्व कुलपति डॉक्टर एसके पांडेय, सेवानिवृत्त आईएएस अनुराग पांडेय और एम्स दिल्ली के निदेशक तीरथ दास डोगरा के अलावा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के कई वक़ील भी शामिल हैं.