हिमालयी क्षेत्र लद्दाख में शांतिपूर्ण प्रदर्शनों का सिलसिला अचानक हिंसा की आग में बदल गया। 24 सितंबर को लेह शहर में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग को लेकर युवाओं का आंदोलन उग्र हो गया, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 80 से अधिक लोग घायल हुए। प्रदर्शनकारियों ने भाजपा कार्यालय और सीआरपीएफ की गाड़ियों में आग लगा दी, जबकि पुलिस को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी। केंद्र सरकार ने इस हिंसा का ठीकरा जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पर फोड़ा, लेकिन वांगचुक ने इसे 'बलि का बकरा बनाने की चाल' बताकर खारिज कर दिया। यह घटना न सिर्फ स्थानीय असंतोष को उजागर करती है, बल्कि सीमा पर संवेदनशील क्षेत्र में मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल भी खड़े कर रही है।
आग कैसे भड़की: युवाओं का गुस्सा और केंद्र की चुप्पी लद्दाख का आंदोलन 10 सितंबर से चल रहा था, जब सोनम वांगचुक ने छठी अनुसूची (आदिवासी क्षेत्रों के लिए संवैधानिक सुरक्षा) और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर अनशन शुरू किया। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) जैसे संगठनों ने इसका समर्थन किया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, लेकिन वादे पूरे नहीं हुए। स्थानीय नौकरियों, जमीन और पर्यावरण की सुरक्षा पर बाहरी हस्तक्षेप बढ़ा है, जिससे युवा परेशान हैं। 23 सितंबर को दो वरिष्ठ कार्यकर्ताओं (उम्र 62 और 71 वर्ष) के अनशन के दौरान बेहोश होने के बाद 24 सितंबर को पूर्ण बंद का आह्वान हुआ। सुबह 11:30 बजे के आसपास शांतिपूर्ण मार्च उग्र हो गया। जेन-जेड (Gen-Z) युवा, छात्राएं, कॉलेज छात्र और भिक्षु सड़कों पर उतरे। उन्होंने भाजपा कार्यालय, हिल काउंसिल मुख्यालय और सरकारी दफ्तरों पर हमला बोला। आगजनी की घटनाओं में सीआरपीएफ वाहन और पुलिस वाहन जल गए। पुलिस ने लाठीचार्ज किया, फिर गोलीबारी में चार मौतें हुईं। लेह में कर्फ्यू लगा दिया गया, और पांच से अधिक लोगों के जमावड़े पर प्रतिबंध लगा। वांगचुक ने वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "कोई अंदाजा नहीं था कि ऐसा होगा। युवाओं का गुस्सा फूट पड़ा क्योंकि शांतिपूर्ण अनशन काम नहीं आ रहा। यह जेन-जेड का फ्रेंजी है, वे गोलियों से भी नहीं डरे।" उन्होंने अपील की, "यह बकवास बंद करो, इससे हमारा मुद्दा कमजोर होता है।" #### मोदी सरकार के लिए क्यों है बड़ी टेंशन? यह हिंसा मोदी सरकार के लिए कई मोर्चों पर चुनौती है। पहला,
सीमा सुरक्षा का खतरा
लद्दाख चीन सीमा पर स्थित है, जहां 2020 के गलवान संघर्ष के बाद तनाव बरकरार है। हिंसा से स्थानीय असंतोष बढ़ सकता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करेगी। दूसरा,
राजनीतिक दबाव
2019 में UT बनाने का वादा राज्य का दर्जा था, लेकिन अब युवा धोखा महसूस कर रहे हैं। भाजपा कार्यालय पर हमला पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाता है। तीसरा,
संघीय ढांचे पर सवाल
छठी अनुसूची की मांग आदिवासी संस्कृति की रक्षा के लिए है, लेकिन केंद्र की चुप्पी ने इसे 'राजनीतिक साजिश' का रंग दे दिया। विपक्षी नेता जैसे अखिलेश यादव ने इसे 'बीजेपी की विश्वासघात' बताया। गृह मंत्रालय ने कहा कि सरकार LAB-KDA के साथ बातचीत में लगी थी। 26 सितंबर को बैठक तय थी, लेकिन 'राजनीतिक तत्वों' ने इसे बिगाड़ा। मंत्रालय के अनुसार, अनुसूचित जनजाति आरक्षण 45% से बढ़ाकर 84% किया गया, महिलाओं को परिषदों में 33% आरक्षण मिला, और भोटी-पुर्गी भाषाओं को मान्यता दी गई। फिर भी, युवाओं का गुस्सा शांत नहीं हुआ।
सोनम वांगचुक: पर्यावरण योद्धा से राजनीतिक चेहरे तक सोनम वांगचुक लद्दाख के प्रसिद्ध इंजीनियर और कार्यकर्ता हैं। उन्होंने 'आइस स्टूपा' (कृत्रिम हिमनद) बनाकर पानी की कमी सुलझाई और सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया। 3 इडियट्स फिल्म में आमिर खान का किरदार उनके जीवन पर आधारित है। लेकिन 2019 के बाद वे लद्दाख की स्वायत्तता के लिए सक्रिय हो गए। सरकार ने उन पर 'अरब स्प्रिंग' और 'नेपाल जेन-जेड प्रोटेस्ट' का जिक्र कर भीड़ भड़काने का आरोप लगाया। मंत्रालय ने कहा, "वांगचुक ने अनशन जारी रखा और उत्तेजक बयान दिए, जिससे हिंसा हुई। वे स्थिति नियंत्रित करने के बजाय गांव चले गए।" 25 सितंबर को वांगचुक ने जवाब दिया: "सरकार मुझे बलि का बकरा बना रही है ताकि असली समस्याओं से ध्यान हटे। जेल में डाल दो, लेकिन वहां से मैं और चुनौती दूंगा। शांतिपूर्ण आंदोलन को हिंसा में बदल दिया गया क्योंकि मांगें अनसुलझी हैं।" उन्होंने कहा कि युवाओं की हताशा जिम्मेदार है, न कि कोई साजिश। उनके एनजीओ के FCRA लाइसेंस रद्द करने की भी खबरें हैं।
आगे क्या? शांति की अपील, लेकिन आग बुझने का नाम नहीं कर्फ्यू के बावजूद कारगिल में समर्थन बंद जारी है। 50 से अधिक लोग हिरासत में हैं। केंद्र ने स्थिति नियंत्रित होने का दावा किया, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बिना ठोस समाधान के आग फिर भड़क सकती है। वांगचुक ने अनशन तोड़ा, लेकिन आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया। यह घटना बताती है कि हिमालयी क्षेत्रों में स्थानीय आकांक्षाओं को नजरअंदाज करने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। लद्दाख के लोग कहते हैं, "हम शांति चाहते हैं, लेकिन सम्मान भी।" मोदी सरकार अब इस 'टेंशन' को कैसे संभालेगी, यह आने वाले दिनों में साफ होगा।