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Monday, 16 June 2025

मध्य पूर्व में युद्ध की आग और भारतीय कामगारों का भविष्य: क्या भारत अकेले संभाल पाएगा रेस्क्यू की चुनौती?

मध्य पूर्व में युद्ध की आग और भारतीय कामगारों का भविष्य: क्या भारत अकेले संभाल पाएगा रेस्क्यू की चुनौती?

                   प्रतिकात्मक तस्वीर 
मध्य पूर्व में इज़राइल और ईरान के बीच बढ़ता तनाव अब एक पूर्ण युद्ध का रूप लेता दिख रहा है। इस क्षेत्र में फैली अस्थिरता ने न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है, बल्कि वहां काम करने वाले लाखों भारतीय कामगारों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। भारत, जो अपने मजबूत कूटनीतिक रुख और आर्थिक विकास के लिए जाना जाता है, अब एक जटिल चुनौती का सामना कर रहा है: क्या वह इस संकट में अपने नागरिकों को सुरक्षित निकाल सकता है, और क्या देश में रोज़गार की कमी के कारण विदेशों में काम करने को मजबूर भारतीय कामगारों की स्थिति पर पुनर्विचार की आवश्यकता है?


मध्य पूर्व में भारतीय कामगार: एक विशाल आबादी

मध्य पूर्व, विशेष रूप से खाड़ी देशों, इज़राइल और ईरान में, लगभग 80 लाख से अधिक भारतीय प्रवासी कामगार हैं, जो वहां निर्माण, तेल और गैस, स्वास्थ्य सेवा, और अन्य क्षेत्रों में कार्यरत हैं। यह संख्या इज़राइल की कुल आबादी (लगभग 90 लाख) के बराबर है, जो इस क्षेत्र में भारतीयों की विशाल उपस्थिति को दर्शाती है। ये कामगार भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, जो हर साल अरबों डॉलर की रेमिटेंस के रूप में देश में वापस भेजते हैं। लेकिन युद्ध की स्थिति ने इनके जीवन को खतरे में डाल दिया है।

युद्ध का बढ़ता दायरा और भारतीय कामगारों पर खतरा

इज़राइल द्वारा ईरान पर हाल के हमलों, जिसमें सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया गया, ने मध्य पूर्व में तनाव को चरम पर पहुंचा दिया है। ईरान ने जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी है, जिससे युद्ध के क्षेत्रीय विस्तार की आशंका बढ़ गई है। अगर यह संघर्ष सऊदी अरब, यूएई, कतर जैसे अन्य खाड़ी देशों तक फैलता है, जहां भारतीय कामगारों की सबसे बड़ी संख्या है, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।

इज़राइल में, गाजा युद्ध के बाद वहां कामगारों की कमी को पूरा करने के लिए भारत से हजारों श्रमिक भेजे गए। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन कामगारों के परिवार अब उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि हवाई हमलों और सायरन की आवाज़ें उनके लिए रोज़मर्रा की बात हो गई हैं। ईरान में भी, विशेष रूप से 1,500 से अधिक भारतीय छात्र और अन्य पेशेवर फंसे हुए हैं, जो युद्ध की स्थिति में और जोखिम में हैं।
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भारत का रेस्क्यू ऑपरेशन: क्या यह संभव है?

भारत ने पहले भी संकटग्रस्त क्षेत्रों से अपने नागरिकों को निकालने में सफलता हासिल की है। उदाहरण के लिए, 1990 में खाड़ी युद्ध के दौरान ऑपरेशन डेज़र्ट स्टॉर्म और 2015 में यमन संकट के दौरान ऑपरेशन राहत में भारत ने हजारों नागरिकों को सुरक्षित निकाला था। हाल ही में, विदेश मंत्रालय ने इज़राइल और ईरान में फंसे भारतीयों के लिए 24x7 कंट्रोल रूम स्थापित किया है, जिसके हेल्पलाइन नंबर (+91-11-23012113, +91-11-23014104, +91-11-23017905, +91-9968291988) आपातकालीन सहायता के लिए उपलब्ध हैं। 

लेकिन मध्य पूर्व में इतनी बड़ी संख्या में भारतीय कामगारों को निकालना एक अभूतपूर्व चुनौती होगी। भारत के पास मजबूत नौसेना और वायुसेना है, लेकिन लाखों लोगों को एक साथ निकालने के लिए व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहयोग, हवाई और समुद्री मार्गों की उपलब्धता, और क्षेत्रीय देशों के साथ समन्वय की आवश्यकता होगी। अगर युद्ध का दायरा बढ़ता है और स्ट्रेट ऑफ होर्मुज़ जैसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग बंद होते हैं, तो रेस्क्यू ऑपरेशन और जटिल हो सकता है।

रोज़गार की कमी: विदेश पलायन का मूल कारण

भारत में रोज़गार के अवसरों की कमी ने लाखों नागरिकों को मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों में काम की तलाश में जाने के लिए मजबूर किया है। इज़राइल जैसे देशों में भारतीय कामगारों को एक से दो लाख रुपये महीने की कमाई का लालच आकर्षित करता है, जो भारत में मिलने वाले वेतन से कहीं अधिक है। लेकिन यह अवसर अब जोखिम में बदल रहा है। भारत में बेरोज़गारी दर, विशेष रूप से युवाओं के बीच, 2023-24 में 10% से अधिक रही है, और ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों की कमी ने इस पलायन को और बढ़ावा दिया है। 

भारत की कूटनीतिक चुनौती

भारत का इज़राइल और ईरान दोनों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। भारत ने दोनों देशों से संयम बरतने और कूटनीतिक वार्ता की अपील की है, लेकिन युद्ध की स्थिति में तटस्थ रहना मुश्किल हो सकता है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र और एससीओ जैसे मंचों पर इज़राइल के खिलाफ प्रस्तावों से खुद को अलग रखा है, जो उसकी संतुलित नीति को दर्शाता है। लेकिन अगर युद्ध लंबा खिंचता है, तो भारत को न केवल अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, बल्कि तेल की कीमतों में उछाल और निर्यात में कमी जैसे आर्थिक प्रभावों से भी निपटना होगा।

आगे का रास्ता

भारत के सामने दोहरी चुनौती है: पहला, अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालना, और दूसरा, देश में रोज़गार सृजन को बढ़ावा देना ताकि विदेशों में जोखिम भरे स्थानों पर जाने की आवश्यकता कम हो। सरकार को चाहिए कि वह निम्नलिखित कदम उठाए:

आपातकालीन निकासी योजना: मध्य पूर्व में युद्ध की स्थिति के लिए एक व्यापक रेस्क्यू योजना तैयार की जाए, जिसमें क्षेत्रीय देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों का सहयोग शामिल हो।

रोज़गार सृजन: भारत में स्किल डेवलपमेंट और स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा देकर स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर बढ़ाए जाएं।

कूटनीतिक प्रयास: भारत को अपनी तटस्थता बनाए रखते हुए मध्य पूर्व में शांति स्थापना के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

आर्थिक तैयारी: तेल की कीमतों में उछाल से निपटने के लिए भारत को अपने तेल भंडार को मजबूत करना होगा और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान देना होगा।

निष्कर्ष

मध्य पूर्व में इज़राइल-ईरान युद्ध ने भारतीय कामगारों की सुरक्षा और भारत की आर्थिक स्थिरता के लिए गंभीर चुनौतियां खड़ी की हैं। भारत ने पहले भी संकटों में अपने नागरिकों को सुरक्षित निकाला है, लेकिन इस बार का पैमाना अभूतपूर्व है। साथ ही, यह स्थिति भारत को अपनी आंतरिक रोज़गार नीतियों पर पुनर्विचार करने का अवसर देती है। क्या भारत अकेले इस चुनौती का सामना कर सकता है? शायद नहीं, लेकिन अपनी कूटनीतिक सूझबूझ, सैन्य क्षमता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बल पर भारत इस संकट से निपट सकता है। यह समय है कि भारत न केवल अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे, बल्कि भविष्य में ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए दीर्घकालिक नीतियां बनाए।